कुतुब मीनार या विष्णु ध्वज - जानें असली इतिहास

वर्ष 2014 भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण सन है क्योकि इसी समय नरेंद्र मोदी की ताजपोशी भारत के प्रधानमन्त्री के रूप में हुई। भारतीय जनता पार्टी का शासनकाल दुनियाभर में हिन्दू शासन की शुरुआत के तौर पर देखा जाता है और प्रधानमन्त्री मोदी की छवि कट्टर हिन्दू राष्ट्रवादी नेता के रूप में।  ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोप की मीडिया के अलावा अरब क्षेत्र की मीडिया भी भारत को हिन्दू राष्ट्र बनने की राह पर बता रही है। भले ही भारत में इस प्रकार की बातें कम होती हों लेकिन 2014 के बाद उन मुद्दों का उठाना शुरू हुआ है जो अभी तक उठाये नही गये। अयोध्या मसले का हल निकलने के बाद अब काशी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का केस भी न्यायालय में चल रहा है। साथ ही विभिन्न स्थान, जोकि पहले हिन्दू मन्दिर थे और बाद में मुस्लिम राजाओं ने उन्हें तोड़कर मस्जिद बनाई, हर उस जगह पर वापस कब्जा लेने के लिए हिन्दू पक्ष न्यायालय की तरफ देखने लगा है। भारत में अपने इतिहास से लगाव बहुत पहले से रहा है लेकिन आजादी के बाद भारत की सरकारों ने जो नीति अपनाई उसने भारत के इतिहास पर झूठ की एक परत चढ़ा दी। मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण विदेशी आक्रान्ताओं को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया। उनकी हर करतूत को छुपाकर उन्हें महान घोषित किया गया। बाबर ने अयोध्या में मन्दिर तोड़ा, अकबर ने हिन्दू और जैनों के तमाम मन्दिरों को तोड़कर फतेहपुर सीकरी बसाई और औरंगजेब ने उत्तर भारत में लगभग सभी हिन्दुओं के आस्था के केन्द्रों को तोड़ दिया। इतना सब कुछ होने के बाबजूद इतिहास में सिर्फ मुगलों का महिमामंडन हुआ बल्कि असली तथ्यों को छिपाया भी गया।

वर्तमान समय में दिल्ली स्थित क़ुतुबमीनार पर विवाद बढ़ गया है। क़ुतुब मीनार परिसर की एतिहासिकता पर कोई विवाद नही है क्योकि स्वयं पुरातत्व विभाग का वहां लगा बोर्ड बताता है कि हिन्दू और जैन मन्दिरों को तोड़कर वहां मस्जिद बनाई गयी है। हाँ बस विवाद इतना है कि जब यह साक्ष्य मौजूद हैं कि हिन्दू मन्दिरों को तोड़कर वो स्थान मस्जिद में परिवर्तित किया गया तो स्थान को हिन्दुओं को क्यों नही सौंपा गया?

लेकिन परिसर में खड़ी क़ुतुबमीनार की एतिहासिकता पर विवाद अवश्य है। क्योकि कुतुबदीन ऐबक द्वारा यह मीनार बनाई गयी, ऐसा दावा किया जाता है। यह दावा विभिन्न तथ्यों के आगे ज्यादा देर नही टिकता और ध्वस्त हो जाता है।

इस ब्लॉग में क़ुतुब मीनार का विस्तृत विश्लेष्ण करने का प्रयास किया गया है। क़ुतुब मीनार का निर्माण क्यों हुआ? यह बड़ा सवाल है। इसका उत्तर दिया जाता है कि क़ुतुब मीनार एक विजय स्तम्भ है यानी जीत की ख़ुशी में बनाई गयी मीनार। मोहम्मद गौरी की तराइन के युद्ध में जीत की ख़ुशी में इसका निर्माण किया गया। अब सवाल उठता है कि आखिर पानीपत के युद्ध में जीत की ख़ुशी में यह मीनार पानीपत से इतनी दूर क्यों बनाई गयी, इसे बनाना ही था तो पानीपत में बनाते! इसका जबाब दिया जाता है कि मोहम्मद गोरी ने इसे बनवाना शुरू किया जोकि दिल्ली का शासक था और दिल्ली उसकी राजधानी। इधर एक तथ्य यह है कि मोहम्मद गौरी ने दिल्ली को कभी अपनी राजधानी नही माना क्योकि उसकी राजधानी गजनी (अफ़ग़ानिस्तान) में थी। सवाल यह भी उठता है कि अगर गौरी ने इसे बनाया तो इसका नाम गौरी मीनार क्यों नही रखा और गजनी शहर में क्यों नही बनाया। उत्तर दिया जाता है कि इसका निर्माण तो क़ुतुब दीन ऐबक ने किया इसलिए इसका नाम क़ुतुबमीनार है और क़ुतुबदींन ऐबक गौरी का गुलाम था इसलिए अपने सरदार के लिए इसे बनाया। सवाल यही उठता है कि गौरी ने अगर इसे बनाया तराइन युद्ध के विजय की ख़ुशी में तो क़ुतुबदींन ऐबक को इसका श्रेय क्यों दिया जाता है और अगर क़ुतुब दीन ऐबक ने बनाया तो तराइन के युद्ध से क्यों जोड़ा जाता है। अगर यह भी मान लिया जाये कि क़ुतुबदीन ऐबक ने ही इसे बनाया तो फिर सवाल वही उठता है कि उसने दिल्ली में ही क्यों बनाई क्योकि क़ुतुबदीन ऐबक लाहौर का सुल्तान बना और वहीं से उसने राज किया। लाहौर में ही उसकी मृत्यु हुई और वहीं उसका मकबरा है।

उपर के सवाल तथाकथित इतिहासकारों के झूठ का पर्दाफाश कर देते हैं। लेकिन झूठ को सच बनाने के लिए एक और थ्योरी दी जाती है। वह है कि क़ुतुब मीनार तराईन युद्ध की जीत में नही बनाई गयी बल्कि यह तो मस्जिद की एक मीनार है जिसपर चढकर अजान दी जाती थी। कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद जोकि कुतुबमीनार परिसर में हिन्दू-जैन मन्दिरों को तोड़कर बनाई थी उसकी ही एक मीनार थी। अब सवाल उठता है कि ऐसा क्या हुआ कि वक्त के साथ मस्जिद ढह गयी और अब सिर्फ अवशेष ही बचे हैं लेकिन मस्जिद की एक मीनार अब भी खड़ी है? अभी एक व्यक्ति ने NCERT में एक RTI लगाकर वो सबूत पेश करने को कहा जिससे पता चलता है कि क़ुतुब मीनार कुतुबदीन ऐबक ने बनवाई और सबसे हास्यास्पद बात तो यह है कि NCERT ने RTI के जबाब में कहा कि उसके पास कोई सबूत नही है जिससे साबित हो कि यह मीनार क़ुतुब दीन ऐबक ने बनवाई।

...दरअसल सिर्फ क़ुतुब मीनार बनवाने की कहानी फर्जी हैं बल्कि इसे मोहम्मद गौरी, क़ुतुबदीन ऐबक इल्तुतमिश से जोड़ना भी सिर्फ बकवास है।

क़ुतुब मीनार असल में काफी पुरानी मीनार है जिसका निर्माण समुन्द्रगुप्त के समय हुआ। दरअसल यह स्थान जहाँ कुतुबमीनार है, यह एक पहाड़ी है जिसका नाम विष्णुपद पहाड़ है। क़ुतुब मीनार के पास 27 हिन्दू मन्दिर थे और एक लौह स्तम्भ जिसमें से मन्दिर तोड़ दिए गये लेकिन लौह स्तम्भ आज भी खड़ा है। लौह स्तम्भ पर प्राचीन लिपि में जो लिखा है उसमें भी यही है कि विष्णुपद पहाड़ के शिखर पर यह स्तम्भ लगाया गया है। 27 मन्दिर, लौह स्तम्भ, एक विष्णु मन्दिर और एक विष्णुध्वज नाम की मीनार, कुछ ऐसा ही था इस जगह का भूगोल। विष्णुध्वज यानी क़ुतुब मीनार का इस्तेमाल आकाशीय गणनाओं के लिए किया जाता था। क़ुतुब मीनार का इस्तेमाल आकाशीय गणनाओं के लिए ही किया जाता था इसका एक सबूत यह भी है किक़ुतुबशब्द अरबी का है जिसका मतलब धुरी, अक्ष, केंद्र बिंदु  या स्तम्भ कहा जाता है। क़ुतुब शब्द को आकाशीय, खगोलीय या दिव्य गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसका एक मतलब यह हुआ कि इस मीनार को बेशक मुस्लिम मीनार में बदल दिया गया लेकिन इसका नाम वही रहा जो इसकी असलियत बताता है। क़ुतुब मीनार ज्योतिष गणना के लिए त्रिकोंणमिति के सिद्धांतों पर बनाई गयी है। आकाश से देखने पर इसकी संरचना कमल के रूप में दिखाई देती है जिसकी 24 पत्तियां हैं। इसकी एक एक पंखुड़ी एक होरा यानी एक घंटा को दर्शाता है। 24 पंखुड़ी का सिद्धांत विशुद्ध रूप से हिन्दू सिद्धांत ही है। यह केंद्र मीनार थी और इसके चारों तरफ 27 मन्दिर जो नक्षत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुतुबुद्दीन ऐबक ने एक विवरण में इन मन्दिरों को तोड़ने की बात लिखी है लेकिन कोई कुव्वत अल इस्लाम मस्जिद बनाने की बात नही की। दरअसल यह मस्जिद किसी भी समकालीन इतिहास में पढने को नही मिलती बल्कि यह शब्द तो 19 सदीं में सर सैयद अहमद खान ने गढ़ा था।



क़ुतुब मीनार के पास महरौली है जिसे मिहिर-अवेली का अपभ्रंश कहा जाता है यानि जहाँ प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक और विक्रमादित्य के नवरत्न में से एक मिहिर रहा करते थे एवं उनके साथ अन्य सहायक, गणितज्ञ, तकनीकविद रहते थे और इस क़ुतुब मीनार का उपयोग अपने शोध के लिए करते थे।



क़ुतुब मीनार पर कुतुबदीन ऐबक ने सिर्फ इतना काम किया कि उसपर उभरी पुष्प, देवता संस्कृत श्लोको का मिटाकर कुरान की आयत लिख दी गयी। दरअसल सभी मुस्लिम शासकों ने यही काम किया है, हिन्दू मन्दिरों को तोड़कर उनपर रंग रोगन करके इस्लामिक स्थान में बदल देना। क़ुतुब मीनार परिसर में हिन्दू मन्दिरों के अवशेष अब भी बिखरे हुए हैं। आज भी एक हिन्दू स्थल अपने उद्धार का इंतजार कर रहा है लेकिन कितनी अफ़सोस की बात है कि टूटे पड़े हिन्दू मन्दिरों के अवशेषों के बीच में खड़े होकर खुद हिन्दू ही क़ुतुब मीनार की तारीफ़ करते हुए मुस्लिम राजाओं को बढाई करते हैं। क़ुतुब मीनार परिसर भले ही पर्यटक स्थल हो लेकिन सही मायने में वो अपने इतिहास को पढने और किताबों में लिखे झूठे इतिहास को बदलने के लिए प्रेरित कर रहा है। वर्तमान में पांच मंजिल और कभी सात माले की इस मीनार को अजान के लिए बनाई मीनार बताकर आज भी करोड़ों लोगों को झूठ बोला जाता है। कभी किसी ने यह सोचने की या पूछने की जरूरत नही समझी कि इतनी ऊँची मीनार से चिल्लाने पर नीचे आवाज सुनाई नही देती और दूसरी बात कि कोई 365 अँधेरी घुमावदार सीढ़ी चढकर रोजाना अजान नही करेगा।



क़ुतुब मीनार में अनेकों पत्तियों के, कलम के निशान, ज्योतिषीय निशान, एक निश्चित संख्या में घुमाव, कोने हर कोने का एक खास कोण, यह सब दर्शाता है कि हिन्दू पंचांग अनुसार बने विष्णु ध्वज को इस्लामिक पेंट में रंग दिया गया है।

क़ुतुब मीनार पर विवाद भले ही अब आया हो लेकिन इसका मतलब यह नही कि यह मुद्दा नया है। वर्तमान सरकार में लोगों को मुद्दे उठाने की स्वतंत्रता दिख रही है तभी ये विवाद न्यायालय की तरफ जा रहे हैं वरना पुरानी सरकारों में तो हिन्दू आस्था को पहचानने से ही इनकार कर दिया जाता था। जिस समय हिन्दुओं के सबसे बड़े आराध्य श्री राम को काल्पनिक राम सेतु को तोड़ने के आदेश दे दिए जाते हों, मस्जिद की रक्षा के लिए सैकड़ों हिन्दुओं को गोलियों से भून दिया जाता हो, ऐसे समय में भला कोई क़ुतुब मीनार का मुद्दा कैसा उठाता? हालाँकि मेरे पिताजी की एक पुरानी डायरी में विष्णुध्वज का प्राचीन इतिहास नाम से एक हस्त लिखित पन्ना मिला जिसे मैं बचपन से काफी बार पढ़ चुका हूँ। कौतुहल बचपन से था कि जब इतना सब कुछ हमें पता है फिर भी क़ुतुब मीनार को इस्लामिक कला क्यों मानते हैं लेकिन शायद समझ अब आया है कि कुछ सच को सच बताने के लिए और मुद्दों को उठाने के लिए सही समय का इंतजार किया जाता है। अब वो सही समय चुका है। यह कह देना कि इन मुद्दों से सामाजिक सोहाद्र खराब होगा या हिन्दू-मुस्लिम झगड़े होंगे, बिलकुल भी जायज नही है। क्योकि इस देश की पहचान उसकी संस्कृति से है। उसके इतिहास से है, आध्यात्मिकता से है। हिन्दू-मुस्लिम एकता अगर इसी पर टिकी है कि हिन्दू अपने पूजास्थलों एतिहासिक स्थलों को वापस मांगे तो ऐसी एकता का बना रहना भारत के लिए खतरनाक है। लगातार मिल रहे साक्ष्यों के आधार पर न्यायालय को तुरंत सुनवाई करनी चाहिए और इन तमाम स्थलों को अयोध्या की भांति ही हिन्दू पक्ष को सौंपे जाना चाहिए। ऐसा इसीलिए भी आवश्यक है कि मुस्लिम काल में हुए जुल्म का गुस्सा ऐसे ही फैसलों से शांत होगा और अगर न्यायालय देर करेगा तो तमाम हिन्दू विरोधी शक्तियों के सत्ता में होने के बाबजूद अगर बाबरी मस्जिद को उखाड़ फेंकने में यह समाज सक्षम है तो वर्तमान समय में जब अधिकांश राज्यों में और केंद्र में हिन्दू आस्था को सम्मान देने वाली सरकार है, ऐसे में अंजाम शायद और भयानक होगा। 

पुरानी डायरी के पन्नो में लिखित लेख निम्नलिखित है।

क़ुतुब मीनार का असली नाम विष्णु ध्वज है और इसका निर्माण सम्राट समुन्द्र गुप्त ने कराया था कि क़ुतुबदीन ऐबक ने, जैसा कि आज के समय माना जाता है। यह मीनार समुन्द्र्गुप्त द्वारा बनाई गयी वेधशाला की केन्द्रीय मीनार थी।



क़ुतुब मीनार का निर्माण समुन्द्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त ने पूरा किया था और उसने विष्णु पद पहाड़ों पर एक लोहे का स्तम्भ भी खड़ा किया था। चन्द्रगुप्त ने वहां एक शिलालेख भी लगवाई थी जिसमें मीनार का नाम विष्णु ध्वज लिखा गया था। चन्द्र गुप्त ने मीनार के चारों ओर 27 मन्दिर भी बनवाये थे जो नक्षत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

क़ुतुब मीनार पांच डिग्री की कोण पर झुका है जिससे 22 जून को दोपहर में कुतुबमीनार की छाया नही बनती, जोकि उत्तरी गोलार्ध का सबसे बड़ा दिन है। क़ुतुब मीनार ऊंचाई की ओर धीरे धीरे कम चौड़ा होता चला गया है इसकी पहली मंजिल में 24 कोने हैं और दूसरी तीसरी मंजिल पर 12 – 12 कोने हैं तथा इतने ही घुमावदार कोने भी हैं। यह कोने वर्ष के पखवाड़ों, राशियों तथा महीनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

मीनार के 27 सूराख, 108 झूलते कमल तथा इसकी सात मंजिलें नक्षत्रों तथा चौथाई अंशों एक सप्ताह के सात दिनों का प्रतिनिधित्वों करके समूचे पंचांग की तस्वीर पेश करते हैं।

क़ुतुब मीनार का निर्माण गणित के ठोस सिद्धांत के आधार पर किया गया है। इसके प्रत्येक कोने द्वार के बीच ठीक 305 डिग्री तथा 35 डिग्री का फासला है।

वेधशाला के 27 मन्दिर 1192 में नष्ट हो गये थे। इन्ही मन्दिरों के अवशेष से मस्जिद का निर्माण किया गया।   






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