ओलम्पिक 2020 में भारत का प्रदर्शन


जापान की राजधानी टोक्यो में शुरू हुए ओलिंपिक 2020 में भारतीय खेमा फिर एक बार निराश और हताश है। विश्व का खेल कुंभ कहे जाने वाले ओलिंपिक में यह पहली बार नही हो रहा बल्कि अब तो हर बार की यही कहानी है। विश्व स्तर पर बेशक आर्थिक और राजनैतिक स्तर पर भारत अपना लोहा मनवा रहा हो लेकिन खेलों के मामले में खुद को श्रेष्ठ साबित करने में पीछे ही रहा है। ऐसा नही है कि भारत खेलों से अनभिज्ञ हो बल्कि सबसे ज्यादा खिलाड़ी हमारे यहां ही हैं लेकिन विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं विशेषतः ओलिंपिक में भारत प्रयास करते करते भी असफल रहता है। ओलिंपिक का हाल यह है कि भारत कभी भी 2 गोल्ड मैडल नही जीता है। पिछली बार 2016 में ब्राजील के रिओ में हुए ओलिंपिक में भारत का खाता अंतिम समय में खुला जब बेडमिंटन और कुश्ती में सिन्धु और साक्षी मलिक ने एक रजत और एक कांस्य पदक जीता। इस बार ओपनिंग सेरेमनी के अगले ही दिन वेटलिफ्टिंग में रजत पदक जीतकर भारत की शुरुआत ऐतिहासिक हुई और लगा कि इस बार स्थिति सुधरेगी लेकिन ओलिंपिक अब एक सप्ताह के और शेष हैं लेकिन भारत कोई और पदक नही जीत सका है। हालाँकि बॉक्सिंग में एक पदक पक्का है और एक और इवेंट में भारत पदक जीत लेगा, ऐसा विश्वास है। अभी कुश्ती के मुकाबले भी शुरू होने हैं तो वहां चमत्कार की उम्मीद भी है लेकिन आज के दिन भारत सिर्फ एक मैडल के साथ है और टॉप 50 से भी बाहर है।




अगर भारत को खेलों में अपनी स्थिति सुधारनी है तो चिर प्रतिद्वंदी चीन से सीखना होगा। चीन में हर उस खेल पर विशेष ध्यान दिया जाता है जो ओलिंपिक में खेले जाते हैं। यही कारण है कि चीन हमेशा शीर्ष के देशों में शामिल रहता है। चीन ने विश्व में स्वयं की छवि चमकाने के लिए स्पेशल खेल स्कूल खोले और खेलों को पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाया। इसी का नतीजा है कि वो हर खेल में गोल्ड जीतने की तैयारी करके आता है और दूसरी तरफ भारत हर खेल में खिलाड़ी तक नही भेज पाता।

दरअसल ओलिंपिक में कौन हिस्सा लेगा या नही इसका नतीजा विश्व में होने वाली अन्य प्रतियोगिताओं से होता है। अलग अलग प्रतियोगिताओं को जीतने और अच्छा खेलने वाले खिलाड़ी ही ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई करते हैं। 

टोक्यो ओलिंपिक 2020 (+1) एक अच्छा मौका है यह सोचने का कि क्यों 135 करोड़ का देश सिर्फ एक या दो मेडल से संतोष कर रहा है? क्या भारत को खेलों के लिए विशेष तैयारी नही करनी चाहिए? 

अगर भारतीय समाज की बात करें तो वो वह खुद खेलों को उपेक्षित करता आया है। सरकारें तो समय के साथ बदल जाती हैं लेकिन समाज में परिवर्तन एकसाथ नही आता। हमारे युवा अब भी इंजीनियरिंग, मेडिकल और लॉ के साथ खेलों को करियर नही बनाते। साथ ही शिक्षा व्यवस्था में इस प्रकार का कोई मौका युवाओं को नही दिया जाता कि खेलों के साथ वो आगे बढ़ सके। भारत के स्कूलों में सामान्यतः सप्ताह में एक दिन खेलों के नाम होता है व हमारी तैयारियां प्रतियोगिता से एक महीने पहले शुरू होती है। विश्व स्तर पर मजबूत देश की छवि बनाने के लिए खेल भी एक तरीका है, ऐसा किसी ने सोचा ही नही। हाँ, भारत खेलों के प्रति दीवानापन दिखाता है लेकिन गिने चुने खेलों में ही। क्रिकेट की बात कर लीजिए, हर वर्ष वर्ल्डकप का दावेदार होता है और इसी क्रिकेट के कारण फुटबॉल की इतनी उपेक्षा हुई कि हम फुटबॉल वर्ल्ड कप में क्वालीफाई ही नही कर पाते। अब किस्मत कहें या कुछ और लेकिन सच यह है कि फुटबॉल तो ओलिंपिक का हिस्सा है जबकि क्रिकेट नही है। सच कहें तो भारत में खेलों में अच्छा कर दिखाने की शक्ति है लेकिन समाज में एक दीवानापन खेलों के प्रति उत्पन्न करना होता। इन्स्टाग्राम पर रील बनाने जैसा जूनून अगर खेलों के प्रति हो जाये तो भारत पदक तालिका में उपर चला जाये।

खेलों में भाग लेने जैसा ही महत्वपूर्ण होता है खेलों का आयोजन करना। आयोजन करने का मतलब है आपके यहाँ सारी व्यवस्थाएं हैं। भारत इस मामले में भी पिछड़ा हुआ है। कई दशक पहले एशियाई खेल आयोजित करने के बाद दोबारा आयोजन करने का कभी प्रयास नही किया गया। कॉमनवेल्थ खेल भी 2010 में आयोजित हुए जो गर्व का कारण बन सकते थे लेकिन राष्ट्रीय शर्म का कारण बन गये। खेलों में भारत ने रिकॉर्ड बनाया लेकिन साथ ही तत्कालीन कांग्रेस सरकार में खेल मंत्री ने भ्रष्टाचार का ऐसा रिकॉर्ड बनाया कि गोल्ड मेडल दिया जा सकता था। ओलिंपिक खेल अभी तक एक बार भी भारत में आयोजित नही हुए हैं और इसका एक कारण उस स्तर के स्टेडियम और सुविधाओं की कमी है। 



वर्तमान सरकार में अहमदाबाद को स्पोर्ट्स सिटी बनाने का निर्णय खेल आयोजन को लेकर भारत की तैयारी ही है। वैसे खेलों को भी बढ़ावा देने के प्रयास इस समय हो रहे हैं। वर्ष 2016 में निराशाजनक प्रदर्शन से परेशान प्रधानमन्त्री मोदी ने खेलों को लेकर कदम बढ़ाना ही ठीक समझा और शुरुआत हुई खेल को जीवन का हिस्सा बनाने की। “खेलो इंडिया” नाम से योजना बनी और इसी योजना का नतीजा है कि भारत टोक्यो ओलिंपिक 2020 में अब तक के सबसे बड़े दल के साथ है। हालाँकि इस योजना का प्रभाव सही मायने में 2024 के ओलिंपिक में दिखेगा। ओलिंपिक तो एक सप्ताह बाद समाप्त हो जायेगा लेकिन अभी कॉमनवेल्थ और एशियाई खेलों जैसी प्रतियोगिताएं इंतजार कर रही हैं। ओलिंपिक में भारतीय राष्ट्रगान बजेगा या नही यह समय बतायेगा लेकिन भारत का प्रदर्शन बेहद खराब है यह सत्य स्वीकारना होगा।


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