अर्नब गोस्वामी के खिलाफ षड्यंत्र

 



भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। सभी को अपने विचार रखने की आजादी है हालाँकि संविधान में दी गयी इस आजादी की परिभाषा सभी अपने अपने हित को देखकर करते हैं। आजादी के बाद धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हुआ और एक नया देश पाकिस्तान ने जन्म लिया हालाँकि जिस टकराव को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए पाकिस्तान बनाया गया, वो समाप्त नही हुआ। भारत हिन्दू बहुल होने के बाबजूद मुस्लिम परस्त सत्ताधारियों को सहता रहा। देश के पहले शिक्षामंत्री एक मुस्लिम को बनाकर उस एजेंडे की पटकथा लिखना शुरू हुआ जिसमें अगर किसी को झुकना था तो वो सिर्फ हिन्दुओं को।

तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु द्वारा तमाम ऐसे फैसले लिए गये जोकि मुस्लिम वर्ग को ध्यान में रखकर लिए गये चाहे उसमें सोमनाथ मन्दिर पुनर्निर्माण का विरोध हो, कश्मीर मामला हो, हैदराबाद और जूनागढ़ रियासतों का विलय हो। नेहरु के प्रधानमंत्री रहते देश में वामपंथी षड्यंत्रों की शुरुआत हुई जिसमें देश की शिक्षा व्यवस्था से वो सब बातें निकाल कर फ़ेंक दी गयी जो भारत की वैभवता और श्रेष्ठता को सिद्ध करती हों। इसके साथ ही पुस्तकों में भर दिया गया वो जहर जो धीरे धीरे भारत को ही खत्म करने लगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु द्वारा शिक्षा व्यवस्था को वामपंथियों के हाथ में देने का परिणाम यही हुआ कि किताबों में महराणा प्रताप हल्दीघाटी का युद्ध हार गये, अकबर महान हो गया, शिवाजी छापामार युद्ध तक सिमित हो गये, टीपू सुल्तान देशभक्त हो गया, ताजमहल प्रेम की निशानी बन गया, श्री राम काल्पनिक हो गये, इस्लाम कश्मीरियत बन गया और मूल कश्मीरी लोग यानी कश्मीरी हिन्दू निर्वासित हो गये। महाभारत-रामायण मायीथोलोजी बन गये, पैगम्बर शांति के प्रतीक हो गये, पांच हजार वर्ष से चले आ रहे राज परिवार गुम हो गये, मुगल ही इतिहास की पुस्तक हो गये, औरंगजेब रहनुमा बन गया, कबीर संत हो गये, कश्मीर अलगाववाद का दूसरा नाम बन गया, दिल्ली मुगलों की हो गयी, पृथ्वीराज चौहान गायब हो गये, सोमनाथ तोड़ने वाले मुहम्मद गौरी का गाँव सबको पता चल गया, मन्दिर तोड़ने का बदला लेने वाले राजा भोज विलुप्त हो गये। अर्थशास्त्र देने वाले चाणक्य का देश समाजवादी हो गया, बीस हजार से ज्यादा वर्षों का लिखित इतिहास रखने वाला देश पिछड़ा हो गया, दुनिया की सबसे महान संस्कृति धर्मनिरपेक्ष हो गयी, गीता का संदेश फिजूल हो गया, कुरान और पुराण बराबर हो गये, गले में चर्च का क्रॉस फैशन हो गया, मन्दिर की बात करना कम्युनल हो गया, मस्जिदों में आतंकी तैयार करना सेक्युलर हो गया, गुरुकुल खोलना और बनाना प्रतिबंधित हो गया, सरकरी फंड पर मदरसा चलाना व्यवस्था का अंग हो गया, पुजारी ब्राह्मणवाद का प्रतीक बनकर अंधविश्वासी हो गये, मौलाना और मौलवी सरकारी पेंशन के हकदार हो गये, पर्दा प्रथा हिन्दुओं पर कलंक हो गयी और मुस्लिमों में नुताह, हलाला, ट्रिपल तलाक पर बात करना असंवैधानिक हो गया। हिन्दू ग्रंथों की बात करना मनुवाद हो गया, दलित उत्पीडन के नाम पर प्रतिबंधित हो गया जबकि शरीयत पर चलने वाली शरीयत अदालतें मुस्लिमों का अंदरूनी मामला हो गया। बंगाल बंगलादेश हो गया और फिर असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल बंगलादेशियो के हो गये, केरल भगवान का प्रदेश हो गया हालाँकि भगवान को मानने वाले हिन्दू 50% हो गये। मन्दिरों का पैसा सरकार का और मस्जिदों-चर्चों का पैसा उन्ही का हो गया। पाकिस्तान में 1947 से पहले मौजूद सभी मन्दिर मस्जिद बन गये और भारत में मन्दिर तोड़कर बनाई गयी सभी मस्जिदें अब भी वक्फ बोर्ड की हैं। राम सेतु तोड़ने का फैसला होने लगा, दंगे में बहुसंख्यक दंगे से पहले ही आरोपी बनने लगा। नेहरु के प्रधानमंत्री रहते जो कार्य हुए उसने भारत से उसका हिंदुत्व मिटाने के लिए हर सम्भव प्रयास किये और इसमें भी शांति न मिली तो उनकी बेटी इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लगाकर संविधान में सेक्युलर शब्द ठूंस दिया। कुलमिलाकर जितना नुकसान हमने इस मुस्लिम परस्त नीतियों का जोकि अक्सर धर्मनिरपेक्ष नीति के नाम से प्रचलित हैं, का सहा वो बताता है कि देश के साथ कितना बड़ा षड्यंत्र हो रहा था।

हालाँकि अँधेरा हटा, कोहरा छटा, कमल खिला और 2014 में राष्ट्रवादी और हिन्दू हित की बात करने वाले लोग सत्ता पर बैठे। इसके बाद 7 दशकों का षड्यंत्र विफल करने का कार्य प्रारम्भ हुआ। वामपंथियों और इसाई मिशनरीज के हाथों से उत्तर पूर्व राज्यों को बचाना शुरू हुआ और देखते देखते सातों राज्यों में भगवा लहर गया। त्रिपुरा से 25 साल तक जमे बैठे वामपंथियों को उखाड़ फ़ेंक दिया गया और असम में भी करारी शिकस्त देकर राष्ट्रवादी सरकार बनी। कश्मीर को स्वायत्त या पाकिस्तान का हिस्सा बनाकर इस्लामिक रियासत का सपना पाल रहे लोगों को बर्बाद करने का कार्य सम्पन्न हुआ और 5 अगस्त 2019 को कश्मीर से धारा 370 हटाकर कश्मीरी झंडे और संविधान को फाड़कर फ़ेंक दिया गया। भारत विरोधी स्टैंड लेने वाले हर एक व्यक्ति को एक साल तक नजरबंद रखकर बता दिया कि भारत की जमीन पर रहकर साजिश करोगे तो भारत सरकार छोड़ने वाली नही। यह राष्ट्रवादियों के सत्ता पर आने के कारण ही हुआ कि देश का गृह मंत्री सभी बंगलादेशी और रोहिंग्याओं को चेतावनी भरे लहजे में कह देता है कि उनका भारत में रहना अब ज्यादा नही चलने वाला और हर कीमत पर NRC लागु होगा। देश के अंदर जहाँ जहाँ इस्लामिक साजिश के कारण घाव थे वहां मरहम भी लगा और कारण भी मिटाया गया। देश को सांस्कृतिक आजादी दिलाने के मिशन के साथ अयोध्या से दशकों पुराना पड़ा मलबा साफ़ करके भव्य राम मंदिर की नीवं भारत के प्रधानमंत्री ने रखी। जिस प्रधानमंत्री कार्यालय से श्री राम को काल्पनिक बताया गया उसी प्रधानमंत्री कार्यालय से श्री अयोध्या से श्री लंका तक राम वन पथ गमन योजना के अंतर्गत विकास का खाका तैयार हुआ।

इन पिछले छह वर्षों में हर उस जगह सफाई अभियान चला जहाँ राजनीतिक रूप से इस्लामिक और वामपंथी अतिक्रमण स्थायी रूप लेने लगा था। स्वयं को हिन्दू कहने से घृणा करने वाले लोग धर्म के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने लगे। हिन्दुओं पर थोपे जा रहे कानूनों का विरोध जो सत्ता द्वारा होना था, हुआ ! साथ ही समाज ने मजबूत होकर कुछ लोगों के एजेंडा को सफल नही होने दिया। पहले 5 साल में जिस प्रकार कार्य केंद्र सरकार ने किया उससे तमाम संस्थानों की नीव हिल गयी जो मुस्लिम तुष्टिकरण के साथ हिन्दू हित पर चोट करते रहे हैं और भारत को अंदरूनी तौर पर खोकला करने की साजिस में लगे थे। वामपंथियों, इस्लामिक संगठनों, इसाई मिशनरीज को मिलने वाला विदेशी धन का स्त्रोत पहचानकर आर्थिक मदद केंद्र सरकार ने रोकी तो इन सब के सामने करो या मरो की स्थिति उत्पन्न हो गयी। जिस प्रकार सांप के सिर पर लाठी का प्रहार सांप की आक्रामकता को बढ़ा देता है उसी प्रकार इस इस्लामिक-मिशनरीज-वामपंथी गठबंधन ने देश पर अंतिम प्रहार करने के लिए सक्रियता बढाई।  सन 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में पुरे भारत में सिर्फ दो गुट थे। एक तरफ राष्ट्रवादी और दूसरी तरफ बाकि सब जिन्होंने इस देश को सत्ता में रहकर, संस्थानों में रहकर, समाजसेवी संगठन बनाकर, मानव अधिकारों की संस्था की शक्ल लेकर, अंतर्राष्ट्रीय मंच बनकर, और हिन्दुओं के भेष में सेक्युलर बनकर इस देश की व्यवस्था को चोट पहुँचाने का कार्य किया।

इतिहास में जाएँ तो प्लासी का युद्ध वो युद्ध था जिसमें भारत की मुख्य सैन्य ताकतें एक साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी थी। कुछ इसी प्रकार राष्ट्रवादियों और हिन्दू हित की बात करने वालों के खिलाफ विशाल गठबंधन तैयार हुआ। जनता जागरूक थी, लोग अपना हित जानते थे, पूर्वजों के पूण्य साथ थे और महान संस्कृति का गौरव दिलो में था जिससे षड्यंत्र विफल हुआ और फिर से प्रचंड बहुमत से सत्ता में राष्ट्रवादी आ गये।

इस बड़ी हार के बाद मिशनरीज-इस्लामिक-वामपंथी गठबंधन के स्वरूप में अलगाववादी ताकतों की कमर टूट गयी। इस हार से उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव किया और अंतिम संयुक्त हमला करने की साजिश बनाई। हालाँकि इस बीच भारत में लोगों का सच्चाई स्वीकार करने का प्रचलन बढ़ गया। सात दशक से सेक्युलर नाम का चोला पहनने पर मजबूर किये जाने के प्रयास विफल होने के बाद समाज ने भी सेक्युलर एजेंडे को फ़ेंक दिया और स्वयं की संस्कृति, धर्म और इतिहास पर गर्व की अनुभूति की। रामायण का प्रसारण हुआ तो विश्व के सभी रिकॉर्ड टूट गये जिसने बता दिया कि भारतवासी फिर से अपनी जड़ों से जुड़ने को तैयार हैं। सांस्कृतिक जागरण का समाज में आना, राष्ट्र का उस चिर निद्रा से जागना है जिसमें रहकर यह राष्ट्र अपना तेज खो रहा था।

अब जिस प्रकार भारत एक सैन्य शक्ति के रूप में, आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। जिस प्रकार भारत के लोग दुसरे देशों में मुख्य पदों पर आसीन हो रहे हैं। जिस प्रकार विश्व में डिसिजन टेकिंग ग्रुप में भारत का प्रभुत्व बढ़ा है, विश्व राजनीती में भारत का दखल बढ़ा है, उससे एक गुट भारत के खिलाफ तैयार हो रहा है। यह गुट अकेले कोई कार्य नही कर सकता इसलिए इसको उन लोगों की मदद लेनी पड़ेगी जो भारत के अंदर रहकर मौके की तलाश कर रहे हैं। जिनकी अंतिम साँस बस टूटने ही वाली है वो लोग अंतिम युद्ध लड़ने की तैयारी में है। भारत के विश्वविद्यालयों में, सरकारी संस्थानों में, फिल्म इंडस्ट्री में, समाजसेवी संगठनों में, मानवाधिकारों की संस्थाओं में, आर्थिक-सामाजिक स्तर पर कार्य करने वाली संस्थाओं में, राजनीतिक दलों में यानी हर जगह एक ऐसी लॉबी है जो इसी मौके के इंतजार में है कि वर्तमान सत्ता नेतृत्व को कमजोर किया जाये। हालाँकि जैसा बताया कि इनकी रणनीति बदली है। ये लोग हर उस व्यक्ति को, संस्था को, संस्थान को निशाना बनायेंगे जोकि राष्ट्रवादी विचारों के साथ है। वर्तमान में इस लॉबी का सबसे बड़ा निशाना है अर्नब गोस्वामी।

भारत के अंदर मीडिया बहुत बड़ी इंडस्ट्री है। इसमें स्क्रीन पर दिखने वाले चेहरों के पीछे अनेकों चेहरे हैं जोकि अपना एजेंडा चला रहे हैं। आज का भाग्य कहें या दुर्भाग्य लेकिन यह सच है कि देश का माहौल तैयार करने में मीडिया चैनलों की बड़ी भूमिका है। सत्ता पर राष्ट्रवादियों के आसीन होते ही मीडिया में छुपकर कार्य कर रहे हिन्दू विरोधी मानसिकता के लोगों का एक्स्पोज होना शुरू हो गया था। धीरे धीरे गंदगी या तो खत्म हो गयी या उसने स्वयं को बचाने के लिए रूप बदल लिया। आपने देखा होगा कुछ स्वयंभू पत्रकार अब चैनल छोड़कर अपना यूट्यूब चैनल बना लिए हैं। हालाँकि जैसा प्रकृति का नियम है कि हर चीज अपना विस्तार करती है तो वही भारत में हुआ। पहले सत्ता में जब अटल विहारी वाजपेयी आये तो उनके भी राष्ट्रवादी विचार थे लेकिन किस प्रकार खुलकर वो बोलते थे या नही, वो हम सब जानते हैं। उनके कार्यों में, फैसलों में निडरता थी लेकिन बड़े फैसले वो भी नही ले पाए। समय के साथ राष्ट्रवाद का पेड़ बड़ा हुआ और नरेंद्र मोदी जैसा नेता इसका संरक्षक बना। नरेंद्र मोदी शासनकाल में फैसलों में निडरता भी रही, और बड़े बड़े फैसले भी लिए गये। वर्तमान में मोदी नेतृत्व ही है इसलिए इसका विस्तार होना अभी बाकि है लेकिन हम योगी आदित्यनाथ के रूप में यह अंदेशा लगा सकते हैं कि फैसलों में निडरता, उसके बाद निडरता के साथ बड़े फैसले लेना, और अब उसके बाद आक्रामकता भी आने वाली है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते योगी आदित्यनाथ ने जिस प्रकार कार्य किया है उससे शत्रु भयभीत हैं। कुछ इसीप्रकार परिस्थिति मीडिया में भी बदली। शुरुआत में सत्ता के प्रति नरमी मीडिया ने दिखाई। फिर उसके बाद विपक्षियों को एक्स्पोज करना शुरू किया। इस्लामिक-मिशनरीज-कम्युनिस्ट गठबंधन की सच्चाई दिखाना शुरू किया और पूर्ववर्ती सरकारों के फैसलों की समीक्षा करनी शुरू हुई। वर्तमान में मीडिया में राष्ट्रवाद का यही रूप है। इस विरोधी गठबंधन में मीडिया के प्रति गुस्सा इसीलिए है और गोदी मीडिया नाम से पुकारा जाने लगा है। हालाँकि भविष्य में यह वृक्ष कितना बड़ा होगा वो तो नही पता लेकिन रिपब्लिक को देखकर हम भविष्य का अंदेशा लगा सकते हैं। रिपब्लिक ने आक्रामकता दिखाना शुरू कर दिया है। वो खबरों तक नही बल्कि खबरों के कारण पर चोट कर रहा है। वर्तमान में बीजेपी विरोधी पार्टी अगर कहीं गठबंधन में सफल हैं तो वो महाराष्ट्र ही है और सफल गठबंधन के एकलौते इस राज्य की सत्ता पर रिपब्लिक ने बड़ा हमला किया है। सुशांत आत्म्हत्याकाण्ड हो या पालघर साधू हत्याकांड, दोनों में किसी चैनल ने आक्रामकता दिखाई तो वो रिपब्लिक था। भारत को इस आक्रामकता की जरूरत भी है। जब रिपब्लिक ने इस मामले को उठाकर तेजी से अपना प्रसार किया तो इस गठबंधन के निशाने पर रिपब्लिक ही आया। मीडिया का सलीका, पत्रकारिता की परिभाषा और एनक्रिंग करने का तरीका सीखाने वाले कई लोग सामने आये और रिपब्लिक को कोसा। हालाँकि मीडिया के लिए कोई एक तरीका इस्तेमाल करने का कोई नियम नही है लेकिन कुछ लोगों के पेट में दर्द है। यह पहली बार है जब दुसरे चैनल यह कह रहे हों कि एक खास चैनल पत्रकारिता नही कर रहा बल्कि नौटंकी करता है। क्या भारत के अंदर कोई व्यक्ति किस प्रकार चैनल चलाएगा, यह कोई एक संस्था तय करेगी? हालाँकि अगर किसी चैनल का कंटेंट देश की सुरक्षा को नुकसान पहुंचाता है और उसपर करवाई करने की कोशिश सरकार करती है तो वो अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा एवं मीडिया पर खतरा का मुद्दा बन जाता है लेकिन जब एक न्यूज़ चैनल के खिलाफ सारे न्यूज़ चैनल खड़े हो जाएँ सिर्फ इसलिए कि वो अपनी बात को आक्रामकता से रखता है तो क्या मीडिया पर खतरा नही है? सबसे बड़ी बात है कि रिपब्लिक की डिबेट में अक्सर गेस्ट के साथ दुर्व्यवहार किया जाने का आरोप लगाया जाता है। मुझे समझ नही आता कि यह कैसा दुर्व्यवहार है कि गेस्ट सुनता रहता है और एक डिबेट के बाद फिर अगले दिन डिबेट में भी आ जाता है लेकिन पेट में दर्द और अपमान दुसरे लोगों को फील होता है। खैर.. रिपब्लिक पर हमले हुए, अलग अलग केस में चैनल को घसीटा जा रहा है। TRP मामले में भी चैनल का नाम आया है। अभी बजाज और पारले जी द्वारा एक फैसला लिया गया है और वो फैसला है कि ये दोनों कम्पनी इस चैनल को ऐडवरटाईजमेंट नही देंगी क्योकि ये चैनल समाज को जहर परोस रहे हैं। यहाँ सभी को इस फैसले के पीछे का कारण समझना होगा। सबसे बड़ी बात यही कि आखिर किस जहर की बात हो रही है? साधुओं की हत्या पर मौन तोड़ने की बात कहने वाला रिपब्लिक जहर फैला रहा है क्या? या साधुओं की हत्या के पीछे मिशनरीज बताना जहर फैलाना है? अगर रिपब्लिक की रिपोर्टिंग में झूठ है और उससे देश में शांति और देश की सुरक्षा खतरे में है तो केन्द्रीय मंत्रालय एक्शन लेता। या फिर स्वतः संज्ञान लेने वाली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट रिपब्लिक को नोटिस भेज देती। लेकिन ऐसा नही हुआ फिर यह कैसे इन कम्पनी को लगा कि रिपब्लिक जहर फैला रहा है। दरअसल अभी दो घटनाओं को हमें समझना होगा उसके बाद यह समझ आ जायेगा कि किस प्रकार रिपब्लिक की रिपोर्टिंग इन दोनों कम्पनियों को जहर लग रही है। पहली घटना है NBA के अध्यक्ष रजत शर्मा का बयान। दरअसल NBA वो एजेंसी है जो न्यूज़ चैनलों को मोनिटर करती है और उनके कंटेंट से जुड़ी शिकायतों पर एक्शन लेती है। इस NBA का सदस्य रिपब्लिक नही हैं। अर्नब गोस्वामी ने बहुत पहले अपनी अलग संस्था बना ली थी जिसकों पचास के लगभग चैनलों का समर्थन साथ में केन्द्रीय मंत्रालय का समर्थन प्राप्त है। अब रिपब्लिक के दोनों हिंदी और अंग्रेजी चैनल TRP में न।1 स्थान पर हैं। दुसरे चैनलों को इससे परेशानी होना स्वभाविक है इसलिए NBA ने यह अपील की थी कि ऐसे चैनलों को एडवरटाईजमेंट कम्पनियां न दें जो NBA का हिस्सा नही हैं। इसका मतलब बायकाट करने का प्लान NBA ने ही रखा ताकि बिना पैसे के ये चैनल न चल पायें। मुंबई पुलिस ने भी TRP मामले में रिपब्लिक के खातों को फ्रीज़ करने की कोशिश की थी ताकि पैसे रोककर चैनल रोका जा सके। अब दूसरी घटना है कि बजाज के मालिक का बयान जोकि भारत की वर्तमान अर्थव्यवस्था को लेकर आया था। आप ऑनलाइन देख सकते हैं। दरअसल बजाज का मालिक उसी मानसिकता से ग्रस्त है या उसी लॉबी का हिस्सा है जिससे राष्ट्रवादियों को लड़ना है। वर्तमान केंद्र सरकार के खिलाफ बजाज का बयान आते रहते हैं।



 दूसरी तरफ पार्ले जी ने भी यह कहा था कि उसकी बिक्री घट रही है ताकि देश में बड़ा आर्थिक संकट होने की बात को बल मिल सके। हालाँकि बाद में पता चला कि पार्ले जी की बिक्री बढ़ गयी है जिससे आर्थिक संकट वाला झूठ नही चला। खैर इन दोनों कम्पनियों का चरित्र हम देख चुके हैं। यहाँ पर एक बड़ी बात सोचने वाली है कि पूंजीपति लोग अगर इस प्रकार मीडिया को प्रभावित करने लगे तो क्या मीडिया निष्पक्ष हो पायेगा? वैसे आज का विपक्ष मीडिया पर हमले का आरोप लगाता है साथ ही सरकार पर पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाता है। लेकिन आज जब दो बड़ी कम्पनी सीधे सीधे यह कहते हुए विज्ञापन नही देती कि आपको कंटेंट बदलना होगा तो क्या यह पूंजीपतियों द्वारा मीडिया पर हमला नही है? आज कुछ लोग इस खबर पर ताली बजा रहे हैं लेकिन वो भूल रहे हैं कि ऐसा करके वो सत्ता में बैठे लोगों को ही मौका दे रहे हैं। अगर कल को कुछ इसी प्रकार का पलटवार हुआ तो क्या होगा?  रिपब्लिक पर एक और केस हुआ है और वो हुआ है मुंबई स्थित फिल्म प्रोडक्शन हाउसेस की तरफ से। यानी पूरा बॉलीवुड रिपब्लिक के खिलाफ उतर आया है।

इससे साफ पता चलता है कि हर तरफ से यह इस्लामिक-वामपंथी-मिशनरीज गठबंधन रिपब्लिक पर हमला कर रहा है। यह उसी प्रकार है जिस प्रकार प्लासी के युद्ध में हारने के बाद भारत में सभी सैन्य शक्तियों ने मिलकर बक्सर के मैदान में अंग्रेजों से युद्ध लड़ा था। बक्सर का युद्ध इतिहास की प्रमुख घटना है क्योकि इसका परिणाम अंग्रेज भारत में रहेंगे या नही रहेंगे, यह तय करने वाला था। बक्सर के युद्ध में सारी शक्तियाँ एक हो गयी थीं। कुछ इसी प्रकार सभी तरफ से रिपब्लिक पर हमले जारी हैं। हालांकि इसी बीच लव जिहाद को बढ़ावा देने वाला तनिष्क ज्वेलर के विज्ञापन पर लोगों का गुस्सा निकला है और जमकर विरोध हुआ। कम्पनी ने न सिर्फ विज्ञापन वापस लिया, माफ़ी मांगी और 2700 करोड़ का नुकसान भी कराया। अब देखना होगा कि समाज जब इतना संगठित और मजबूत है, राष्ट्रवादी लहर प्रबल है ऐसे में ये सभी लोग मिलकर रिपब्लिक को हरा पाते हैं या नही। हालाँकि यह अंतिम हमला है राष्ट्रवादियों पर और इसलिए राष्ट्रवादियों को भी इस अंतिम युद्ध को मिलकर लड़ना होगा।   


Comments