स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

 




स्वामी विवेकानंद द्वारा शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में दिए एतिहासिक व्याख्यान के 127 वर्ष पूर्ण हो गये। स्वामी विवेकानंद जी के ओजस्वी भाषण ने न सिर्फ पश्चिम की हवा में हिन्दू दर्शन की खुशबु को समाहित किया बल्कि अमेरिका और यूरोप को मानवता की वो सीख दी, जिसे पाकर पश्चिम आज भी कृतज्ञ है। धर्म सम्मेलन से हुई सांस्कृतिक जागरण की शुरुआत ने भारत की स्वतंत्रता को भी सुनिश्चित कर दिया था। महत्वपूर्ण कथन है कि किसी भी देश की राजनीतिक परतंत्रता अस्थायी ही है जब तक उसकी संस्कृति परतंत्र नही हुई हो और स्वामी जी ने परतंत्र भारत को सांस्कृतिक आजादी दिलाने का कार्य उस भाषण से किया था।


जब ईसाई मिशनरीज भारत को पिछड़ा बताकर अपने शासन को भारतीयों को सुधारने का तरीका बता रही थी तब स्वामी जी ने उपनिषदों और वेदों में लिखे सार्वभौमिक सत्य को दुनिया के बड़े मंच पर इसप्रकार प्रस्तुत किया कि न सिर्फ दुनिया को एक धर्म में रंग कर आर्थिक और सामाजिक शोषण करने का मिशनरीज की योजना सबके सामने आई बल्कि भारत की एतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत और हिंदुत्व के दर्शन की विजय पताका वहां उपस्थित सैकड़ों पंथों के प्रतिनिधियों के मन मष्तिष्क पर छा गयी।

एक सदी से ज्यादा का समय व्यतीत होने के बाद भी स्वामी जी के व्याख्यान का व्यापक असर दुनिया पर देखा जा सकता है। आयुर्वेद का विश्व पटल पर उपयोग हो या 170 से अधिक देशों में योग दिवस, शाकाहार के प्रति बढ़ता रुझान हो या विश्व में हिन्दुओं का बढ़ता सम्मान, वेदों में निहित विज्ञानं पर शोध हो या पश्चिम में अध्यात्मिक चेतना जागरण का अभियान, राम-कृष्ण के जीवन दर्शन की विश्व में गूंज हो या अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर बढ़ता भारत का प्रभुत्व, यह आज की उपलब्धि है लेकिन इसका रास्ता स्वामी जी ने ही खोला था। 

बहुत कम लोग जानते हैं कि विश्व धर्म सम्मेलन के बाद कई महीनों तक स्वामी जी ने अमेरिका और यूरोप में व्याख्यान दिए। हर बड़े विश्वविद्यालय में उनको आमंत्रित किया गया। इन व्याख्यानों में उपनिषदों और वेदों के जो सूत्र स्वामी जी ने सामने रखे उसने वैज्ञानिकों, संतों, विचारकों और समाज सेवियों को तैयार किया। स्वामी जी के व्याख्यान कई शोधों का आधार बने। टेस्ला, आइंस्टीन, ब्रेन गुडविन जैसे कई वैज्ञानिकों के शोध का निष्कर्ष वही था जो स्वामी जी ने काफी पहले बता दिया था।

कुलमिलाकर सांस्कृतिक और अध्यात्मिक चेतना जागरण के साथ विज्ञानं के क्षेत्र में भी पश्चिम का मार्गदर्शन उन्होंने किया और भारत की अमिट छाप सभी पर छोड़ी। शिकागो भाषण की वर्षगांठ को विश्वबंधुत्व दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसमें भी एक सन्देश छुपा है कि भले ही पश्चिम ने भारत को घृणा के भाव से देखा, हिंदुत्व को दरिद्र कहा, अपने विचारों, धर्मों को थोपा, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक शोषण किया लेकिन जब भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बोलने का अवसर मिला तो भारत ने सबको अपना भाई-बहन बताकर आत्मसात किया और अपने उपर हुए अत्याचारों को अलग रखकर विश्व को परिवार बताया। एक ख़ास धर्म को श्रेष्ठ घोषित करने के लिए आयोजित धर्म सम्मेलन में भारतीय दर्शन ने प्रभुत्व तो जमाया लेकिन उसका उपयोग विश्व बन्धुत्व के लिए किया। आज अगर विश्व में शांति और प्रगति स्थापित करनी है तो स्वामी जी के विचारों को आत्मसात करना होगा। स्वामी जी द्वारा दिखाया गया रास्ता ही विश्व की समस्याओं के समाधान का एकमात्र उपाय है। 


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