महात्मा गाँधी का काला सच






वैसे तो महात्मा गाँधी के बारे में ज्यादा बताने की जरूरत नही है क्योकि आज़ादी के बाद आज तक लगभग सत्तर साल तक गाँधी जी के बारे में, देश की आज़ादी में उनके योगदान और उनके विचारों के बारे में बहुत कुछ बताया गया है. देश के हर विद्यालय में, देश के दूर सुदूर हर कोने में शायद ही कोई हो जो महात्मा गाँधी को न जानता हो.

महात्मा गाँधी को अमेरिकी इतिहास में अपना अलग महत्त्व रखने वाले मार्टिन लूथर किंग और अफ्रीका के महान नेता नेल्सन मंडेला जैसे लोग भी जब अपना प्रेरणास्त्रोत बताने लगे तो महात्मा गाँधी विश्व नेता बन जाते हैं. विश्व स्तर पर महात्मा गाँधी का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है. मुख्यतः अहिंसा का उनका विचार दुनिया में गाँधी को श्रेष्ठ घोषित करता है. आज 80 देशों से करीब 250 पोस्टिंग स्टाम्प गाँधी के नाम पर जारी हो चुके हैं. देश विदेश में सैकड़ों सडकों का नामकरण गाँधी के नाम पर किया गया है. गाँधी एक व्यक्ति न होकर भारत का पर्यावाची के रूप में दुनिया भर में जाने जाते हैं.

इन सभी बातों से उलट एक सच्चाई यह भी है की गाँधी के खिलाफ एक बड़ा वर्ग आज भी खड़ा है. लेकिन गाँधी के विरोध में उठी आवाजों को पहले इतनी अहमियत नही मिली. सन 1948 में नाथूराम गोडसे ने गाँधी की हत्या कर दी. यह हत्या क्यों हुई ? इसका जबाब जानते जानते हम एक ऐसे डार्क वेब में चले जाते हैं जंहा गाँधी का व्यक्तित्व उपर लिखी बातों से बिल्कुल उलट है. 

डार्क वेब अक्सर इन्टरनेट पर मौजूद उन सीक्रेट जानकारियों को कहा जाता है जिसको हर कोई आसानी से एक्सेस नही कर सकता. डार्क वेब के बारे में जानकारी भी बेहद कम है लेकिन डार्क वेब की अपनी अलग दुनिया है, अलग राज हैं और लाखों लोगो, लाखो कम्पनियां, सभी गैरकानूनी धंधे इसका हिस्सा हैं. इसी लिए मेने डार्क वेब का जिक्र किया क्योकि गाँधी के खिलाफ उठती आवाज सीक्रेट हैं लेकिन जब हम इन गाँधी विरोधी तर्को में डुबकी लगाते हैं तो एक अलग ही छवि गाँधी की दिखती है. 

ये तर्क इतिहास और सच का वो हिस्सा हैं जो या तो गाँधी के अच्छे कर्मो के आगे नही टिक पाए इसलिए समय में खो गये या फिर जानबुझकर इनको इतिहास से मिटाने की कोशिश की गयी. गाँधी का जो व्यक्तित्व अंतर्राष्टीय स्तर पर आज है, उससे भारत का मान बढ़ता है. और इसलिए यह समय की मांग है कि हम उन काले अध्याय को न छुएँ.


लेकिन सच को छुपाना गुनाह है. अगर सच को छुपाया जायेगा तो आने वाली पीढ़ी से धोखा होगा. क्यों न सब कुछ जनता के समक्ष रखा जाये और उन्हें स्वय फैसला लेने दे कि वो सबकुछ जानने के बाद गाँधी को किस प्रकार देखते हैं. आईये प्रवेश करते हैं डार्क वेब में जिसमे गाँधी के बारे में वो सब कुछ है जो अब तक अनसुना था.



अक्सर विश्वपटल पर महात्मा गाँधी को भारत का राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया जाता है. भारत के अंदर भी अक्सर राष्ट्रपिता के तौर पर महात्मा गाँधी को पुकारा जाता है. लेकिन यह सच्चाई है कि भारत का कोई राष्ट्रपिता नही है. हमारे देश के इतिहास में कभी भी महात्मा गाँधी को अधिकारिक रूप से राष्ट्रपिता की उपाधि नही दी गयी. संविधान के अनुच्छेद 18(1) के कारण सरकार उन्हें राष्ट्रपिता घोषित कर ही नही सकती क्योकि यह अनुच्छेद सरकार को सैन्य और शैक्षिक ख़िताब के आलावा और कोई उपाधि देने से रोकती है. 

4 जून 1944 को सिंगापूर से रेडियो पर संदेश प्रसारित करते हुए सुभाष चन्द्र बोस ने गाँधी को पहली बार राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था, और तब से यह सिलसिला चल पड़ा. समय समय पर इसके खिलाफ आवाज उठती आई है. जब सभी देशवासी और स्वय महात्मा गाँधी इस देश को अपनी माँ कहते आये हैं तो कोई कैसे राष्ट्रपिता हो सकता है? यह सवाल लाजिमी है और देश के युवाओं को सोचना होगा कि क्या राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करना भारतीय संस्कृति के अनुसार सही है. विदेशों में इसकी परंपरा रही है क्योकि किसी एक व्यक्ति ने अलग देश का निर्माण किया तो उसे उस राष्ट्र का निर्माता या उसे जन्म देने वाला और इसप्रकार राष्ट्रपिता की उपाधि दी गयी. जब कोई नया विश्व मानचित्र पर बना तो उसका राष्ट्रपिता हो सकता है लेकिन जो देश पिछले दस हजार वर्ष से लिखित इतिहास के साथ दुनिया में हो, उसको आज से सिर्फ 70 साल पहले राष्ट्रपिता मिल जाये, कैसे सम्भव है. राष्ट्रपिता की यह उपाधि देश के उन अनगिनत लोगों के साथ अन्याय है जिन्होंने इस देश के लिए गाँधी के साथ और गाँधी से पहले संघर्ष किया.

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महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनचंद करमचन्द गाँधी था. जिसमे करमचन्द गाँधी उनके पिता का नाम है. पुतली बाई उनकी माता का नाम था. पुतलीबाई उनके पिता की चौथी पत्नी थी. पोरबन्दर में जन्मे मोहनचंद करमचंद गाँधी में देश के प्रति उसकी आज़ादी के प्रति कोई भावना नही थी. 15 साल की उम्र में पिता बने गाँधी ने वकालत की. सन 1888 में इंग्लेंड चले गये गाँधी जैन विचारों के करीब थे इसलिए शाकाहार उनकी आदत में आ गया लेकिन तब तक धर्म के बारे में उनकी कोई रूचि नही थी. 
इसके बाद वो भारत आये और 1893 में दक्षिण अफ्रीका चले गये. दक्षिण अफ्रीका के समय गाँधी के विचार नस्लीय भेदभाव से ग्रसित थे. गाँधी स्वयं को अफ़्रीकी काले लोगो के मुकाबले श्रेष्ठ मानते थे. उनके विचारों के कारण हाल ही में घाना में उनकी मूर्ति को जो कि घाना विश्वविद्यालय में लगी थी, विद्यार्थियों ने तोड़ दिया था.

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भगत सिंह की फांसी पर गाँधी को काफी घेरा जाता है. कहते हैं बिना चिंगारी के धुंआ नही उठता. इधर भगत सिंह को फांसी लगने वाली थी, उधर गांधी उस समय के वायसराय लार्ड इरविन से कह रहे थे कि अगर आपको फांसी लगाना ही है तो तय तारीख से दो दिन पहले ही दे दीजिए। फिर से इस लाइन को पढ़िए। एक बार फिर से...।  इस बात का जिक्र खुद पट्टाभि सीतारमैय्या ने अपनी किताब "कांग्रेस का इतिहास-(1885-1947) खंड-1" के पेज नंबर 352 पर किया है। अब समझिए कि पट्टाभि सीतारमैय्या कौन थे। पट्टाभि गांधी जी के बेहद करीबी थे। ये वही पट्टाभि थे जिन्हें गांधी ने साल 1939 के कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में सुभाष चंद्र बोस के खिलाफ अपना उम्मीदवार घोषित किया था। मगर सुभाष बाबू जीत गए। पट्टाभि हार गए। पट्टाभि के हारने पर गांधी ने यहां तक कहा था कि पट्टाभि की हार मेरी हार है। बाद में पट्टाभि सीतारमैय्या साल 1948 में नेहरू के समर्थन से कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। 
पट्टाभि के मुताबिक उस रोज गांधी ने वायसराय लार्ड इरविन से भगत सिंह की फांसी को लेकर ये कहा था-
"भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी देनी है तो कराची के अधिवेशन के बाद देने के बजाए, पहले ही दे दी जाए। ताकि देश को पता चल जाए कि वस्तुत: उसकी क्या स्थिति है और लोगों के दिलों में झूठी आशाएं नही बंधेंगी।"
यही हुआ भी। भगत सिंह को अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी और कांग्रेस का कराची अधिवेशन इसके तीन दिन बाद यानि 26 मार्च 1931 को शुरू हुआ।

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महात्मा गाँधी को हिन्दू-मुस्लिम एकता के ब्रांड अम्बेसडर के रूप में स्थापित किया गया है. उनका मुस्लिम प्रेम वैसे तो जगजाहिर है लेकिन अगर वाकई हिन्दू-मुस्लिम एकता उनके सिद्धांत में थी तो उन्होंने अपने लिए इस सिद्धांत तो तोड़ने में कोई कसर नही छोड़ी. गांधी हमेशा हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करते थे। और मुस्लिमो के लिए व् उनको खुश करने के लिए तुर्की के खिलाफत आंदोलन तक का समर्थन किया था। मगर जब निजी जिंदगी की बात आई तो गांधी के सारे सिद्धांत धुआं हो गए। गांधी का बेटा मणिलाल दक्षिण अफ्रीका में एक मुस्लिम युवती फातिमा के प्यार में पड़ गया था। वह फातिमा से शादी करना चाहता था। फातिमा से शादी करने के लिए मणिलाल ने अपने भाई रामदास को पत्र भी लिखा। उधर फातिमा ने भी गांधी को पत्र लिखा। रामदास ने वह पत्र गांधी के पते पर भेज दिया। महात्मा गांधी ने इसके जवाब में 3 अप्रैल 1926 को मणिलाल को चिट्ठी लिखी। गांधी की इस चिट्ठी को पढ़ने के बाद इस देश के सेक्युलरवादियों को आज रात खाना नही हजम होगा। गांधी लिखते हैं- "रामदास को लिखा तुम्हारा पत्र मिला। (फातिमा) का भी। मुझे यह शंका तो थी ही। पर तुम्हारी यह इच्छा धर्म-विरूद्ध है। तुम हिंदू धर्म का पालन करो और (फातिमा) इस्लाम का। यह एक म्यान में दो तलवार वाली बात हुई। या फिर तुम दोनो ने धर्म छोड़ दिया है। फिर तुम्हारी संतान किस धर्म का पालन करेगी? किसकी छाया में पले बढ़ेगी? किसी के लिए धर्म नही छोड़ा जा सकता है। क्या  (फातिमा) अपने पिता के घर मांसाहार नही करेगी? समाज की दृष्टि से भी यह विवाह अनुचित है। विवाह के बाद तुम्हारा भारत आकर बसना तो असंभव ही हो जाएगा।" गांधी की ये चिट्ठी उनके अपने लिखे वांगमय में मौजूद है। इसका स्रोत है- महात्मा समग्र, खंड 35 और पेज है 12 से 13 

महात्मा के बेटे मणिलाल उस समय तक दक्षिण अफ्रीका के डरबन से इंडियन ओपीनियन अखबार निकालते थे। महात्मा गांधी ने उन्हें फातिमा से शादी करने पर इस अखबार से निकाल देने की धमकी भी दी। और फिर गांधी ने आनन फानन में मणिलाल की महाराष्ट्र के अकोला में शादी करा दी ताकि उन्हें एक मुस्लिम लड़की से शादी करने से रोका जा सके। 

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गाँधी का स्त्रियों के प्रति दृष्टिकोण क्या था, ये भी बड़ा दिलचस्प है। महात्मा गांधी के टालस्टाय फार्म में 7 साल से लेकर 20 साल तक के युवक और युवतियां थे। एक रोज गाँधी को मालूम पड़ा कि एक लड़के ने दो लड़कियों के साथ कुछ अश्लील मजाक किया है। गाँधी ने पहले युवकों को समझाया। पर इतना काफी नही था। वे उन लड़कियों के शरीर पर ऐसा चिन्ह बनाना चाहते थे जिससे कि हर युवक समझ ले कि इन पर कुदृष्टि नही डाली जा सकती है। गांधी ने उन दोनो लड़कियों से कहा कि वे उन्हें अपने सुंदर लंबे बाल काटने की अनुमति दें। गांधी आगे लिखते हैं- "मैं जिस हाथ से इस प्रसंग को लिख रहा हूं, उस हाथ से मैने उन लड़कियों के बालों पर कैंची चला दी।" इस बीच गाँधी के फीनिक्स आश्रम में एक और घटनाक्रम हुआ। गाँधी के बेटे मणिलाल के जयकुंवर उर्फ जेकी नाम की विवाहित महिला से शारीरिक संबंध बन गए। कस्तूरबा और गांधी के मित्र कैलेनबाक को भी इन पर संदेह था। अब इस पर गांधी का रिएक्शन देखिए। गांधी ने उस महिला जेकी को भरे आश्रम में यह कहकर लज्जित किया कि उसने विवाहित होते हुए भी एक "निर्दोष किशोर" के साथ व्याभिचार किया है। शब्दों पर ध्यान दीजिएगा। "निर्दोष किशोर"। ये गांधी अपने बेटे के लिए लिख रहे हैं। उधर गांधी ने कैलनबाक को लिखी चिट्ठी में जेकी को झूठी, पाखंडी और बुरी भावनाओं वाली औरत करार दिया। गांधी ने इसके खिलाफ कठोर उपवास शुरू कर दिया। पूरा आश्रम जेकी को वितृष्णा और घृणा की नजर से देख रहा था। जेकी ने प्रायश्चित स्वरूप अपने बाल काट डाले। श्रृंगार करना बंद कर दिया। तब जाकर गांधी माने और उन्होंने अपना अनशन खत्म किया। (Source- Gandhi-ordained in South Africa- page 412)

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गांधी अपने दौर के सबसे बड़े अलोकतांत्रिक व्यक्ति थे। आप आसान भाषा में कहें तो सबसे बड़े तानाशाह। दो उदाहरण हैं। दोनो पुख्ता इतिहास। 

1- ये साल 1938 की बात है। गुजरात के हरिपुर में कांग्रेस अधिवेशन आयोजित किया गया। सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए। सुभाष बाबू प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। वे अंग्रेजों को उनकी ही भाषा में समझाकर भारत की आजादी चाहते थे। कांग्रेस में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। अगले साल यानि 1939 में जबलपुर के पास त्रिपुरी में फिर से कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। अब तक महात्मा गांधी को समझ आ गया था कि कांग्रेस सुभाष चंद्र बोस के पीछे चलने लगी है और सुभाष बाबू इस लड़ाई को लीड कर रहे हैं। महात्मा के हाथों से जमीन खिसक रही थी। यही हुआ भी। सुभाष बाबू साल 1939 में एक बार फिर से कांग्रेस अध्यक्ष के लिए खड़े हुए। इस बार महात्मा गांधी ने उनका जमकर विरोध किया। महात्मा गांधी ने पट्टाभि सीतारमैय्या को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। यहां तक कोई दिक्कत नही थी। लोकतंत्र में विरोध सबका हक है। मगर आगे सुनिए। बड़ी बात यह थी कि महात्मा गांधी के मुखर विरोध के बावजूद सुभाष बाबू कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीत गए। गांधी के भीतर का अलोकतांत्रिक व्यक्ति ये बर्दाश्त नही कर सका। उन्होंने ऐलान कर दिया कि पट्टाभि सीतारमैय्या की हार मेरी हार है और कांग्रेस में उनके चेलों ने लोकतांत्रिक ढंग से जीते हुए सुभाष का खुला विरोध शुरू कर दिया। आखिरकार सुभाष चंद्र बोस ने इस्तीफा दे दिया।

2-- ये साल 1946 था। कांग्रेस 1946 के असेंबली इलेक्शन भारी बहुमत से जीत चुकी थी। आजादी मिलनी तय हो चुकी थी और ये भी तय था कि जो कांग्रेस का अध्यक्ष चुना जाएगा, वही देश का प्रधानमंत्री बनेगा। कांग्रेस के अध्यक्ष इस वक्त मौलाना अबुल कलाम आजाद थे। गांधी यहां भी कूद गए। चुनाव 29 अप्रैल 1946 को था। मगर गांधी ने 20 अप्रैल को ही अपनी पसंद जाहिर कर दी। उन्होंने मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए नेहरू को इस पद के लिए प्रस्तावित कर दिया। चुनाव हुआ। 15 में से 12 प्रदेश कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल के पक्ष में राय दी। नेहरू को एक भी वोट नही मिला। फिर से दोहरा रहा हूं। एक भी वोट नही मिला। मगर गांधी अड़ गए। उन्होंने सरदार पटेल पर पीछे हटने का दबाव डाला। पटेल पीछे हटे। नेहरू जिन्हें एक भी वोट नही मिला था, वे कांग्रेस अध्यक्ष बने और फिर देश के प्रधानमंत्री बने।

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गाँधी के बारे में कुछ और बातें -

1-- 21 साल के युवा मोहनदास लंदन में परायी स्त्री को देखकर विकार ग्रस्त हो जाते हैं। उनका मन उस औरत के साथ रंगरेलियां मनाने की इच्छा करता है पर वे ऐेसा कर नहीं कर पाते हैं क्योंकि ऐन मौके पर उनका एक शुभचिंतक उन्हें वहां से भगा देता है। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

2-- 28 साल के गांधी दक्षिण अफ्रीका की यात्रा के दौरान थकान मिटाने के लिए हब्शी औरतों की बस्ती में एक वेश्या की कोठरी में घुस जाते हैं। फिर वहां से शर्मसार होकर बाहर निकलते हैं। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड) 

3-- 40 साल के गांधी अपने सबसे प्रिय दोस्त हेनरी पोलक की पत्नी मिली ग्राहम पोलक के प्रति एक खास किस्म की आत्मीयता महसूस करते हैं। वे एक दूसरे के निकट आ जाते हैं। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड) 

4- 41 साल के महात्मा गांधी 18 साल की मॉड नाम की उस लड़की से प्रभावित हो जाते हैं जो विदाई के वक्त उनसे हाथ मिलाने के बजाय उनका चुंबन लेना चाहती थी। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड) 

5-- 48 साल के गांधी नीली आंखों वाली 22 साल की सुंदर डेनिश कन्या एस्थर फैरिंग के जाल में फंस जाते हैं। उसके लिए बापू  लिखते हैं, "आज रात को सोने जाते समय मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी।" (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड) 

6--  51 साल के गांधी 48 साल की विवाहिता महिला श्रीमती सरला देवी चौधरानी के चक्कर में पड़ जाते हैं। वे उन्हें अपनी "आध्यात्मिक पत्नी" का खिताब दे डालते हैं। यह महिला भी उन्हें सपने में बार-बार परेशान करती है। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

7--  56 साल की उम्र में महात्मा 33 साल की मैडलिन स्लेड के प्यार में पड़ जाते हैं। वे उसकी भक्ति से प्रभावित होकर उसे मीरा बना देते हैं। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

8-- 60 साल की उम्र में महात्मा गांधी 18 साल की तेज तर्रार लड़की प्रेमा के माया जाल में फंस जाते हैं। प्रेमा जब उन्हें गले लगाती है तो वे कहते हैं, "तू पागल तो है ही, लेकिन तेरा पागलपन मुझे प्यारा लगता है।" (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

9--64 साल के महात्मा गांधी एक 24 साल अमेरिकन महिला नीला सी कुक उर्फ नीला नागिनी के संपर्क में आते हैं। उसके बारे में आम धारणा होती है कि वह एक कामुक और झूठी औरत है। ये गांधी स्वयं लिखते हैं। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

10-- 65 साल के महात्मा गांधी 35 साल की जर्मन महिला मार्गरेट स्पीगल उर्फ अमला को कपड़े पहनने का सलीका सिखाते हैं। इसके लिए उन्हें "पेटीकोट" शब्द के सही अनुवाद की तलाश ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में करनी पड़ती है। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

11- 69 साल के महात्मा 18 साल की सुंदर युवती डॉक्टर सुशीला नैयर के संपर्क में आते हैं जिससे वह प्राकृतिक चिकित्सा के नाम पर नग्न होकर अपने शरीर की मालिश कराते हैं और वक्त बचाने के लिए उसके साथ स्नान भी कर लेते हैं। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

12-- 72 साल के महात्मा अपने ब्रह्मचारी जीवन की प्रयोगशाला में बाल विधवा लीलावती आसर, पटियाला के बड़े जमींदार की बेटी अमतुस्सलाम और कपूरथला खानदान की राजकुमारी अमृत कौर समेत आधा दर्जन महिलाओं के साथ सिर्फ यह जानने के लिए सोते हैं उम्र के इस पड़ाव में भी क्या उनमें कामवासना शेष है?  (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

13-- 76 साल के महात्मा 16 साल की आभा, वीणा और कंचन नाम की युवतियों को ब्रह्मचर्य का पाठ सिखाने के लिए "नग्न" होने को कहते हैं। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

14- 77 साल के महात्मा अपनी पोती मनु के साथ नोआखाली की सर्द रातें नग्न सोकर गुजारते हैं। स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड) 

15- 79 साल के महात्मा जीवन के अंतिम क्षणों तक आभा और मनु के साथ एक बिस्तर पर सोते हैं। स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड) 

वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर शुक्ल सागर ने इन सभी को संकलित कर एक शानदार किताब लिखी है- महात्मा गांधी, ब्रह्राचर्य के प्रयोग। एक एक तथ्य सबूतों पर आधारित है। आप ज्यादा जानकारी के लिए उसे पढिये..


Dark Web में किसी भी चीज का Copyright किसी के पास नही होता. और इसीलिए उपर लिखे किसी भी बात की जिम्मेदारी मैं नही लेता. सभी बातें रिसर्च, स्त्रोतों और कई व्यक्तियों के रेफरेंस से लिखी गयी हैं. कोई गलती होने की संभावना है. Dark Web में हर बात सच होती है लेकिन कोई कहता नही. मैं भी नही कहूँगा. स्वयं खोज कीजिए और आने वाली पीढ़ी को जरुर बताएं वो सच जो आपको Dark Web पर ही मिलेगा.

Reference from a different blogs, Facebook accounts and Self Research. 






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