रावण और वामपंथी षड्यंत्र


भारत की सबसे बड़ी मजबूती उसकी संस्कृति है । एक लम्बे काल खंड की परतंत्रता के पश्चात हिंदुत्व विचारों ने भारत को उसके परम वैभव पर पुनः लौटने की राह दिखाई । सही मायने में भारत का अस्तित्व तभी तक सम्भव है जब तक विभिन्न विचारों वाले इस देश में सांस्कृतिक एकता विद्यमान है । यही कारण है कि समय समय पर सांस्कृतिक एकता को तोड़ने के लिए काफी प्रयास हुए । सबसे बड़ा हमला देश के अंदर ही बुद्धिजीवी वर्ग का चोला पहनकर बैठा वामपंथी गैंग कर रहा है । इस वामपंथी गैग ने जोकि स्वयं नास्तिक है, भारत की संस्कृति को खंडित करने का कुटिल चालों से कार्य कर रहा है । कई बार पुस्तकों के माध्यम से, भ्रमित करने वाले लेखों के माध्यम से, कई बार वैचारिक भिन्नताओं का फायदा उठाकर एक दुसरे के विपरीत खड़े करने की कोशिश करके इस गैंग ने भारत को तोड़ने की साजिश रची है । हाल ही में, रावण के गुणगान करने का एक प्रचलन शुरू हुआ है और इसके पीछे भी एक बड़ी साजिश से इनकार नही किया जा सकता ।

विषय गंभीर है इसलिए विस्तार से जानना आवश्यक है । हम सभी जानते हैं कि रावण महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित श्री रामायण महाकाव्य का हिस्सा है जोकि त्रेतायुग में राक्षस जाति का सबसे बड़ा राजा था और उस समाज का प्रतिनिधित्व करता था जोकि आर्य संस्कृति के विरुद्ध कार्य करता था । रामायण श्री राम और रावण युद्ध पर ही आधारित है जिसमें स्पष्ट रूप से रावण की हार को अधर्म की हार और राम की जीत को धर्म की जीत बताया गया है ।

श्री राम के चरित्र को व व्यक्तित्व को श्री रामायण में इतने सुंदर तरह से व्यक्त किया गया है कि श्री राम हम सभी के लिए आदर्श हो गये । श्री राम न सिर्फ हमारे अराध्य हुए बल्कि समाज में राम बनने के लिए सपना देखे जाने लगा । त्रेतायुग में श्री राम ने ऐसा शासन किया कि आज भी उसको आदर्श के रूप में देखा जाता है । लेकिन इन सबके बाबजूद श्री राम कुछ लोगों की आँखों में चुभे क्योकिं श्री राम ने नाम पर भारत एकजुट होता है । श्री राम के चरित्र को गिराने के लिए न जाने कितने भ्रमित करने वाले संदर्भ जोड़े गये । प्रभु श्री राम को स्त्री विरोधी, आदिवासी विरोधी दिखाने का प्रयास कुछ लोगों ने किया और इसका एक ही लक्ष्य था, प्रभु श्री राम पर ऊँगली उठाकर भारत की सांस्कृतिक एकता पर हमला करना । यह वामपंथी गैंग एक तरफ श्री राम पर ऊँगली उठाता है वहीं दूसरी तरफ रावण का महिमामंडन करता है । रावण को बहन के अपमान का बदला लेने वाला महान राजा बताने का प्रयास इसी गैंग ने किया । इस गैंग ने एक कदम आगे बढाते हुए रावण को संस्कारी साबित कर दिया और मां सीता की पवित्रता को भी रावण की महानता बना दिया । आजकल व्हात्सप्प पर ऐसा प्रसारित होता हुआ देखना आम है कि “यह रावण की महानता थी कि मां सीता सुरक्षित रहीं”

एक तरफ गर्भवती पत्नी को घर से बाहर निकालने का आरोप लगा श्री राम को स्त्री विरोधी सिद्ध करने वाले वामपंथी गैंग दूसरी तरफ रावण को स्त्री मर्यादा की रक्षा करने वाला बताता है । है न हास्यास्पद? हमको इसी साजिश को समझना है । न सिर्फ श्री राम पर लगाये आरोप बल्कि रावण की महानता के दावे की भी हवा निकालनी होगी ।

प्रभु श्री राम त्रेतायुग के कौशल महाजनपद के राजकुमार थे । वो जिस राजघराने में हुए उस परिवार की अनेकों पीढ़ियों ने महान कार्य किये । एक के बाद एक चक्रवर्ती राजा उस परिवार में हुए । धरती पर गंगा जी को लाने वाले भागीरथ भी श्री राम के पूर्वज थे । स्वयं राजा दशरथ ने देवताओं और असुरों के बीच हुए युद्ध में देवताओं की तरफ से युद्ध लड़ा था । पिता की मर्यादा की रक्षा करने के लिए 14 वर्ष का वनवास स्वीकार करने वाले एक अच्छे पुत्र के रूप में, वन में भ्रमण कर ऋषियों-मुनियों की सेवा करने वाले आदर्श राजकुमार के रूप में, दुष्ट व मनुष्यों को खाने वाले असुरों का संहार करने वाले वीर योद्धा के रूप में, अपनी पत्नी के लिए साधारण वानरों (वन + नर = वानर अर्थात वो लोग जो वन में रहते हैं) की सहायता से उस समय की सबसे बड़ी असुरी शक्ति से सीधा युद्ध लड़ने वाले एक आदर्श पति के रूप में, लक्ष्मण, भारत व शत्रुघन से प्यार करने वाले भाई के रूप में और आदर्श राजा के रूप में महर्षि वाल्मीकि ने श्री राम के व्यक्तित्व का आदर्श बताते हुए चित्रण किया है ।

प्रभु श्री राम के शासन करने को ही आदर्श मानकर भारतीय गणतंत्र की नीव रखी गयी और संविधान पर छपी श्री राम की तस्वीर बताती है कि इस संविधान का उद्देश्य राम राज्य की भांति ही सभी के लिए सुखमय जीवन बनाना है । इसके साथ ही प्रभु श्री राम भारत की सांस्कृतिक जागरण का केंद्र भी बने । जब बाबर ने अयोध्या स्थित राम मन्दिर को तोड़ मस्जिद का निर्माण कर दिया तो उस स्थान पर पुनः मन्दिर निर्माण हेतु हिन्दू समाज को बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ी । आजादी मिलने से पहले कई बार युद्ध लड़े गये सैकड़ों लोगों ने स्वयं के जीवन का बलिदान दिया और आजादी के पश्चात भी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपनाने वाली पार्टियों की सरकारों ने राम भक्तों को मन्दिर बनाने से रोकने के लिए कोर्ट पर अनावश्यक दबाब डालकर केस लटकाए रखा और जब जब सरकार के उत्पीडन से परेशान होकर लोगों ने अयोध्या की तरफ कदम बढाये तो पुलिस फायरिंग में सैकड़ों लोगों को मार दिया गया । इस उत्पीड़न के कारण राम मन्दिर आन्दोलन हिन्दू चेतना जगाने का केंद्र बिंदु बन गया और सांस्कृतिक-सामाजिक व राजनैतिक रूप से श्री राम सांस्कृतिक एकता के वाहक हो गये । जब मुस्लिम वोट के लिए बड़े बड़े राजनीतिक दल मस्जिद के समर्थन में खड़े थे तब श्री राम मन्दिर के लिए भी कुछ दल खड़े हो गये, इसमें भाजपा प्रमुख थी । श्री राम की कृपा से ही एक बड़े राजनीतिक परिवर्तन को भारत ने देखा और दो दशक में भारत की राजनीतिक स्थिति पूरी तरह बदल गयी । आज केंद्र में भाजपा का पूर्ण बहुमत की सरकार होने के साथ ही अयोध्या में श्री राम मन्दिर का निर्माण चल रहा है ।

श्री राम ने जो राजनीती में बड़ी भूमिका निभाई उससे एक खास विचारधारा के लोगों में भय उत्पन्न हो गया । राम के नाम पर एकजुट होते समाज को खंडित करने के लिए ही राम के व्यक्तित्व को गिराने की साजिशे और तेज हो गयीं । देखते देखते यह प्रचारित किया जाने लगा कि रावण तो महान था । रावण को वेदों का ज्ञाता था । उसनें तो मां सीता का हरण करके महान कार्य किया और उससे भी बड़ा महान कार्य सीता माँ को सुरक्षित करके किया । हमें इसी असत्य को सभी के सामने लाना होगा ।

 

इससे पहले की रावण की महानता के झूठे दावों की हवा निकालें, उससे पहले वामपंथी गैंग की एक और साजिश से परिचित होना आवश्यक है । इसी गैंग ने यह साबित करने की कोशिश की कि माँ दुर्गा ने जिस महिषासुर का वध किया वो बहुत नेक इंसान था । महिषासुर आदिवासियों का राजा था जिसकों माँ दुर्गा ने षड्यंत्र से मारा । यही नही, इन वामपंथियों ने आदिवासी क्षेत्रों में मुख्यतः झारखंड, छतीसगढ़ में महिषासुर के मन्दिर बनवाये और माँ दुर्गा के विरुद्ध लोगों को भड़काया । इनका मुख्य लक्ष्य आदिवासियों को यह बताना था कि हिन्दू उनके दुश्मन है जिनके देवी देवताओं ने उनके राजा को मारा था ।

इन वामपंथियों ने एक और झूठ को हम सभी के सामने सत्य बनाकर बताया । हमने पुस्तकों में पढ़ा कि आर्य बाहर से आये और भारत में आकर बस गये । यह थ्योरी भी इसी गैंग की साजिश का हिस्सा था । वामपंथी काफी समय तक यह बताते रहे कि आर्य बाहर से आये और उन्होंने भारत में मौजूद लोगों पर अत्याचार किया और यही रहने लगे । इससे दक्षिण भारत के लोगों को द्रविड़ कहकर उनको मूलनिवासी बता दिया गया और आर्य यानि उत्तर भारत में रहने वाले लोगों को (जो हिन्दू धर्म में, वेदों में विश्वास रखते हैं) दुश्मन करार दे दिया गया । इसी थ्योरी के कारण लम्बे समय तक भारत में आर्य vs द्रविड़ की लड़ाई चली और इसी ने भाषा के नाम पर द्वेष बढ़ाया जिससे सैकड़ों लोगों की जान गयी । दक्षिण भारत में हिंदी का विरोध भी इन्ही साजिशों के कारण हुआ । हालाँकि अब यह साबित हो चुका है आर्य कहीं बाहर से नही आये बल्कि हम लोग ही आर्य हैं और हमेशा से भारत में ही रहे ।    

इन वामपंथियों की हर साजिश को बेनकाब करना भारत की मजबूती के लिए आवश्यक है ।

रावण बलशाली था इसमें कोई संदेह नही लेकिन उसका कोई भी कार्य शास्त्र सम्वत नही था । ऐसा कहें कि आर्य संस्कृति जिसे आज हिन्दू धर्म कहा जाता है, उसके विपरीत उसका कार्य था । रावण के सगे सम्बन्धी भारत में उत्पात मचाते थे और यज्ञों जैसे अन्य धार्मिक कार्यों को विफल करने, ऋषियों के आश्रमों को नष्ट करने, देवताओं को परेशान करने व आम जनों की हत्या करने का दुष्ट कार्य करते थे । प्रभु श्री राम द्वारा मारे गये सभी प्रमुख राक्षस जैसे कि ताड़का, मारीच, सुबाहु, खर, दूषण आदि रावण के परिवार से ही थे । अर्थात रावण कितना अत्याचारी और धर्म से विमुख था इससे पता चलता है । वह महादेव की पूजा अवश्य करता था पर उसका ज्ञान वैसा ही था जैसे आज के समय में आतंकवादी ओसामा बिन लादेन का इंजीनियर होना । हम क्या लादेन को इंजीनियर होने के कारण उसका अपराध भूल सकते हैं? बिलकुल नही । ठीक उसी प्रकार ज्ञान रावण को होगा लेकिन उसके कार्य धर्म के अनुसार नही थे ।

रावण के व्यक्तित्व का हम इससे भी अंदाजा लगा सकते हैं कि विभीषण जैसे धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति ने लंका को छोड़ना उचित समझा और समाज के हित के लिए अपने भाई की हत्या को उचित समझा । रावण के सगे सम्बन्धियों ने ही दंडकारणय के क्षेत्र को ऋषियों के लिए व आम नागरिकों के लिए योग्य बना दिया था । अर्थात रावण का मारा जाना अत्यंत आवश्यक था ।

यह कहना रावण ज्ञानी था, वैसा ही है जैसे लादेन को शिक्षित बताना । इसलिए आज हमें रावण को ज्ञानी कहना बंद कर न होगा । वो बेहद दुष्टअज्ञानीअहंकारीअमर्यादितअवैदिकअत्याचारी था, पापी था और उसका धर्म से कोई लेना देना नही था ।

रावण व सहस्त्रबाहू युद्ध

रावण बलशाली था पर इतना भी नही कि कोई हरा ही न सके । ऐसे कितने ही प्रसंग मिलते हैं जिसमें रावण पराजित हुआ । सबसे पहले सहस्त्रबाहु से हुए युद्ध में रावण हारा और मुश्किल से जान बची । इसके साथ ही बाली ने भी कई दिनों तक रावण को अपनी काख में दबाए रखा । इससे रावण का सर्वशक्तिशाली होने का दावा भी खोखला होता है ।  भाई का हक मारने वाले रावण ने न सिर्फ कुबेर से लंका छीनी बल्कि उसके पुष्पक विमान पर भी कब्जा कर लिया । रावण ने देवताओं से युद्ध किये थे और महादेव के वरदान का हमेशा दुरूपयोग किया । इन सबका परिणाम यह हुआ कि रावण की मृत्यु बहुत बुरी तरह हुई । उसके पुरे कुल का नाश हो गया । अपने सामने अपने सगे सम्बन्धियों का विनाश देखा । अपने नगर का विध्वंश देखा । तत्पश्चात स्वयं भी मारा गया ।

एक असत्य प्रसंग बार बार समाज में फैलाया जाता रहा है कि सीता माँ का सतीत्व बचा रहा यह रावण की महानता है । ऐसा कहने वाले यकीनन वो लोग हैं जिन्होंने कभी रामायण को नही पढ़ा या फिर एक एजेंडे पर इस समाज में जहर फैलाने का कार्य कर रहे हैं । सीता माँ का जन्म प्रथ्वी के गर्भ से हुआ और महाराज जनक के घर जिस शिव धनुष को कोई हिला नही पाता था, उसको माँ सीता बचपन में उठा लेती थीं । क्या साधारण बालिका ऐसा कर सकती है? साथ ही जिस माँ सीता के कहने पर धरती स्वयं फटकर उनको लेने आई हो, क्या सीता माँ इतनी अबला रही होंगी कि रावण के कारण सतीत्व बचा रहा । माँ सीता जब तक लंका में रहीं तब तक रावण की हिम्मत नही हुई कि उनको छू सके । इसके पीछे रावण की महानता नही बल्कि दो बड़े कारण थे । पहला कि सीता माँ अशोक वटिका में जब जब रावण से सामना करती तब तब एक तिनके को हाथ में रखकर उसपर निगाह बनाये रखती । यह वह नैतिकता का अनुसरण है कि कैद में होकर भी किसी पुरुष पर उन्होंने नजर नही डाली । इसी सतीत्व के कारण माँ सीता के अंदर इतनी भी शक्ति थी कि अगर गुस्से में वो किसी के तरफ देखें तो आग से भस्म हो जाये । रावण इसी से डरता था । जबकि रावण महिलाओं का कितना सम्मान करता था उसका इसी बात से पता चलता है कि एक बार रावण ने रंभा नाम की अप्सरा से दुराचार करने की कोशिश की थी । तब रंभा ने श्राप दिया था कि वह किसी स्त्री से बिना उसकी मर्जी के सम्बन्ध बनाएगा तो उसके सिर के टुकड़े टुकड़े हो जायेंगे । वामपंथी साजिश में रावण को सदाचारी समझने वालों को यह अवश्य पता होना चाहिए ।


रावण का अंत कोई शानदार तरीके से नही हुआ बल्कि एक दुराचारी जैसे मरता है वैसा ही हुआ । रावण अत्याचार, दुराचार का प्रतिनिधित्व करता है । उससे स्वयं को जोड़ना स्वयं के नैतिक पतन की शुरुआत करना है । समाज में एक वर्ग जो अज्ञानतावश गर्व से रावण का वंशज बताता है, उसको स्वयं के इस कृत्य पर शर्म आनी चाहिए । आने वाली  विजय दशमी को सिर्फ रावण का ही पुतला न फूंके बल्कि रावण के अच्छा होने की ग़लतफ़हमी में भी आग लगायें ।

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