मोदी नेतृत्व में विश्व पटल पर चमका भारत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 


केंद्र में बीजेपी सरकार बनते ही भारत की विदेश नीति में एक अद्भुत परिवर्तन हुआ है. प्रधानमंत्री जी का वो बयान कि "न हम आँख झुका कर बात करेंगे न आँख दिखाकर बात करेंगे, हम आँख से आंख मिलाकर बात करेंगे" सार्थक होता दिख रहा है. सत्ता में आते ही ताबड़तोड़ विदेशी दौरे करके मोदी जी ने अपनी दूरदर्शिता का परिचय दे दिया था. वर्षो से सुस्त हालत में पड़े रिश्तो में मोदी जी ने बड़ी गर्मजोशी से पक्के किये और पुरे विश्व में भारत की एक पॉजिटिव छवि बना दी. शायद ही कोई ऐसा देश हो जिसका विश्व में थोडा भी प्रभाव है और प्रधानंत्री जी ने वंहा की यात्रा न की हो. आज भारत की पहचान एक ताकतवर राष्ट्र के रूप में होती है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भारत अब अपने विचार रखना शुरू कर चूका है और अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन जैसे देशो के साथ द्विपक्षीय वार्ता में किसी तीसरे देश के बारे में अगर चर्चा हो तो अब नया नही है. पिछले चार साल में मोदी सरकार ने भारत की इमेज को परिवर्तित करके रख दिया है.


हाल ही में अर्जेंटीना में आयोजित G20 सम्मेलन के दौरान भारत - अमेरिका - जापान की त्रिपक्षीय वार्ता हुई. तो वन्ही भारत - चीन - रूस की भी त्रिपक्षीय वार्ता हुई. ये दोनों सामान्य बातें नही है. G20 हो या अन्य बड़े मंच, भारत की विदेश नीति की सफलता साफ झलकती है. इसी के उपर प्रस्तुत है एक विश्लेष्ण- मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय स्थिति और भारत की विदेश नीति 

भारत की पड़ोस नीति :

अगर विदेश नीति का थोड़ा सा निष्कर्ष निकालें तो हम पाएंगे भारत सरकार ने विश्व में किसी एक गुट में रहने की कोशिश नही की बल्कि दुसरो को अपने साथ जुड़े रहने के लिए मजबूर कर दिया है. हम हमारे रिश्ते के मुताबिक पड़ोसियों के साथ बात करें पड़ोसी यानि भारतीय महाद्वीप देशो की तो मोदी जी ने अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, भूटान, बंगलादेश, म्यांमार, श्रीलंका, और पाकिस्तान (अनौपचारिक) यात्रा की. आज भारत की अफ़ग़ानिस्तान के साथ रिश्ते काफी अच्छे हैं. अरबो का निवेश किया हुआ है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कभी भी अफ़ग़ानिस्तान पर चर्चा होगी तो कोई भी देश भारत को उस चर्चा से अलग नही रख सकता. नेपाल में वामपंथी सरकार आने के बाद नेपाल का झुकाव चीन की तरफ जरुर हुआ लेकिन भारत ने निवेश जारी रखा हुआ है. हिंदु देश होने के कारण नेपाल की जनता में भारत के प्रति जो छवि है वो वंहा की सरकार आसानी से नहीं मिटा सकती. बांग्लादेश से रिश्ते बेहतर हुए हैं. हमने अपना जमीनी विवाद सुलझाया. वंहा पर निवेश भी किया हुआ है, सबसे महत्वपूर्ण वंहा पर धीरे धीरे बन रहा चीन का बेस, उसको भी समाप्त करने की तरफ हम अग्रसर हैं. म्यांमार के साथ हमेशा से रिश्ते ठीक रहे हैं. रोंहिग्या मुद्दे पर दुनिया ने म्यांमार सरकार को घेरा लेकिन भारत ने हमेशा साथ दिया. भारतीय सेना ने उधर सीमा पार आतंकी ठिकानो को ध्वस्त भी किया. श्री लंका से भारत के रिश्ते हमेशा बढिया रहे हैं और भारत पर लंका की निर्भरता भी है. हालाँकि स्थानीय सरकार कभी चीन की समर्थक होती है तो कभी भारत समर्थक. लेकिन चीन की कर्ज देकर जमीन हडपने की नीति का शिकार श्री लंका हुआ है और उसको यह सबक भारत के और करीब लायेगा.

भारत - मालदीव

मालदीव में हाल ही में सब कुछ ठीक हो गया है. और प्रधानमंत्री मोदी जी की पहली यात्रा हाल ही में हुई है. वंहा के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति भारत समर्थक ही हैं. प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान से भी रिश्ते सुधारने की नई कोशिश की. लेकिन हम कह सकते हैं की भारत ने पूरी तरह पाकिस्तानी प्रेम में डुबकी नही लगायी. सर्वप्रथम शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशो को आमंत्रित करके मोदी जी ने बता दिया था की हम अपने रिश्तो को बेहतर करना चाहते हैं, और फिर अचानक पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के अनुरोध पर कराची पहुंच जाना, मोदी जी की विदेशनीति का ही इक्का था.

मोदी की अचानक पाकिस्तान यात्रा - लाहौर एअरपोर्ट पर गार्ड ऑफ़ ऑनर

पाकिस्तान के साथ रिश्ते कभी नही सुधर सकते जबतक वहां पर लोकतंत्र मजबूत नही होगा. और यही कारण है कि पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश कर चुकी मोदी सरकार ने पाकिस्तान को दुनिया में अलग थलग करने के मिशन पर भी काम किया और सबक सिखाने के लहजे से हम इसमें काफी सफल हुए. आज पाकिस्तान के साथ चीन को छोडकर किसी भी बड़े देश से अच्छे रिश्ते नही हैं. कर्ज में डूबा पड़ा है पाकिस्तान. निवेश नही हो पा रहा, निर्यात भी कम है , पाकिस्तानी रुपया 144 पर आ गया. IMF के आगे हाथ फैला रहा है और मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान बार बार भारत के आगे रिश्ते बेहतर करने के लिए गिगिड़ा रहे हैं. 

भारत शुरुआत में रूस के करीब माना जाता रहा है. लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने शुरुआत में अमेरिका को प्राथमिकता दी. पहले बराक ओबामा को गणतंत्र दिवस पर अतिथि बनाकर दुनिया को सन्देश दिया गया की भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते इतिहास के सबसे अच्छे दौर में है. फिर अमेरिका ने भी भारत के लिए अपने विदेश नीति में अहम जगह प्रदान दी. विश्व पटल पर एशिया-पैसिफिक रीजन को इंडो-पैसिफिक नाम देना अमेरिका की नजरो में भारत की बढती अहमियत को दर्शाता है. लेकिन अमेरिका के करीब भारत का आ जाना अचानक नहीं हुआ है बल्कि विश्व में ऐसी परिस्थिति पैदा हुई की अमेरिका को स्वयं भारत को अपना अहम दोस्त का तमगा देना पड़ा.

अमेरिका और चीन के मध्य सम्बन्ध खराब हैं. इसके दो कारण दक्षिणी चीनी सागर और उत्तर कोरिया हैं. दक्षिणी चीन सागर में लगातार टापुओं का निर्माण और पडोसी देशो के टापुओं पर भी अपना अधिकार जमाने की चीन की नीति अमेरिका को पसंद नही आ रही है.

दक्षिणी चीन सागर 

वंही उत्तर कोरिया और अमेरिका के सम्बन्ध सबसे बुरे दौर में हैं. और उत्तर कोरिया की चीन के साथ नजदीकी बढ़ी हैं. इनका एक कारण दोनों देशो में वामपंथी सरकार/विचारधारा होना भी है. इसके लिए चीन पर अमेरिका का दबाब है की उत्तर कोरिया से सम्बन्ध तोड़े. इसी कड़ी में उत्तर कोरिया के नजदीक मौजूद जापान, अमेरिका का साझेदार है. अमेरिका - जापान के बीच एक रक्षा करार है जिसमे हिरोशिमा-नागासाकी के नष्ट होने के बाद किसी भी युद्ध की स्थिति में जापान की अमेरिका को ही रक्षा करनी पड़ेगी. ऐसे में उत्तर कोरिया जापान के बीच युद्ध खतरा देखते हुए अमेरिका चीन पर दबाब बढ़ाना चाहता है और हाल ही में आर्थिक युद्ध (trade war) की भी शुरुआत हुई. अमेरिका के लिए अमेरिकी -चीनी रिश्तो की खटास ने इस रीजन में ऐसे साथी की जरूरत महसूस हुई जो चीन पर लगाम लगा सके. जापान आर्थिक तौर पर सम्रद्ध है लेकीन सैन्य मामलो में अमेरिका पर निर्भर है. आस्ट्रेलिया सैन्य मामलो में इस रीजन में एक पहचान है लेकिन आर्थिक तौर पर चीन का सामना नही कर सकता. और आस्ट्रेलिया-चीन दुरी भी बहुत है. ऐसे में  भारत ही एकलौता राष्ट्र है जो चीन के लिए आर्थिक और सैन्य दोनों तरफ से खतरा के रूप में उभर रहा है. भारत के चीन के साथ रिश्ते औपचारिक रूप से ही ठीक रहे हैं. तिब्बत पर कब्जे, 1962 का युद्ध और उसके बाद भी जमीनी सीमा और जल सीमा उलंघन दोनों देशो के बीच कड़वाहट बनाये हुए है.  इसलिए भारत को चीन के खिलाफ खड़ा करके अमेरिका अपने हित देख रहा है लेकिन भारत को बिना किसी शर्त पर अमेरिकी साथ मिलना बेहतर भविष्य की तरफ बढ़ते कदम हैं.
 
भारत-चीन 


इसमें कोई शक नही की अमेरिका और रूस के बीच रिश्ते कभी सामान्य नही रहे. दोनों की विश्व शक्ति हैं और "एक जंगल में दो शेर बिना लड़े नही रह सकते" वाली कहावत इन पर लागु होती है. पुराने समय से ही दोनों के बीच विवादों का अम्बार लगा हुआ है. अमेरिका को भी पता है की रूस को पीछे हटाना उसके अकेले के वश में नही है. और जब मौजूदा  परिपेक्ष्य में रूस-चीन की दोस्ती होते दिख रही है तो अमेरिका भी अपने लिए साथी की तलाश में है. और वह साथी भारत के सिवा कोई नही हो सकता. अंतर्राष्टीय स्तर पर अमेरिकी-भारतीय गठजोड़ रुसी-चीनी गठजोड़ के खिलाफ ही मुमकिन हो सका है.
"मैं हिन्दुओ को पसंद करता हूँ. मैं मोदी की बहुत इज्जत करता हूँ और उनसे मिलने को बेकरार हूँ" - ट्रम्प 

भारत - अमेरिका 

अमेरिकी दृष्टि से भले ही अमरीकी-भारतीय गठजोड़ भले ही रूस-चीन के खिलाफ हो लेकिन नरेंद्र मोदी की विदेश नीति में अब भी रूस के लिए जगह है. लगातार अमेरिका से बढती नजदीकियों के बाबजूद मोदी जी ने रुसी यात्राओ में रूस को पुराना और विश्वसनीय दोस्त कहकर संबंधो को कभी कमजोर नही होने दिया. एक बार बिना एजेंडे की बैठक के लिए मोदी जी का रूस जाकर पुतिन से मिलना दर्शाता है की भारत और रूस अलग अलग नही है. हाल ही में S-400 डील करके भारत ने जता दिया की वो अब भी रूस को इतना ही महत्त्व देता है जितना पहले देता था. इस डील के मायने इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाते है जब अमेरिका ने सभी देशो को इस डील करने पर प्रतिबंध की धमकी दे रखी थी.

S-400
अमेरिका की तरफ से बार बार भारत को इस डील को कैंसिल करने की बात की गयी लेकिन भारत की विदेश मंत्री का यह बयान कि "भारत में सिर्फ भारतीय कानून चलता है किसी और देश का नही" से स्पष्ट था की आज का भारत अमेरिका के आगे सीना तानकर खड़ा है. इस डील के पक्के होने से कुछ दिन पहले अमेरिका ने चीनी सेना पर (रूस से सैन्य उपकरण खरीदे जाने के कारण) प्रतिबंध लगाकर भारत को एक सन्देश देना चाहा था की वो यह डील न करे. लेकिन जैसे ही भारत ने यह डील पक्की की तो अमेरिका ने अपने हथियार डाल दिए. दुनिया के लिए अचरज भरे निर्णय के साथ अमेरिका ने भारत के उपर प्रतिबंध लगाने से मना करते हुए अपने सम्बन्ध और पक्के करने की बात कही. यह भारतीय विदेश नीति का ही कमाल था की अमेरिका भारत के खिलाफ कदम उठाने का साहस नही कर पाया.

भारत - रूस के सम्बन्ध गर्मजोशी भरे हैं. सीरिया, अफगानिस्तान जैसे मुद्दों पर रूस ने भारत से वार्ता की है और मौजूदा भारत-चीन-पाकिस्तान गठजोड़ भले ही दिखता हो लेकिन सच्चाई यही है की पुतिन समेत किसी भी रुसी राष्ट्रपति ने कभी पाकिस्तान जाने की सोची भी नही. रूस का राष्ट्रपति पुरे दक्षिण एशिया में अगर आता है तो सिर्फ भारत.

मोदी - पुतिन

अगर बात करे जापान और आस्ट्रेलिया के साथ सम्बन्ध की तो केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से ही दोनों देशो से रिश्ते बेहतर हुए हैं. जापान हमारा पुराना व्यापारिक साझेदार है. और अब सच्चा मित्र भी. सिंजो अबे ने प्रधानमंत्री मोदी को अपना दोस्त बताया था और आजीवन भारत के साथ मित्रता की बात कही थी. जापानी प्रधानमंत्री अबे पुरे दुनिया में सिर्फ चुनिन्दा लोगो को फोलो करते हैं जिसमे एक नाम मोदी जी का भी है. भारत की अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की नीव भी जापानी प्रधानमंत्री द्वारा रखी गयी है. इस प्रोजेक्ट में जापान ने बेहद कम ब्याज पर भारी निवेश किया है. वंही भारत के पूर्वी राज्यों में निवेश के लिए जापान ही एकलौता देश है जिसे सरकार ने अनुमति दे रखी है. आस्ट्रेलिया के साथ यूरेनियम करार और संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सीट पर समर्थन दोनों भारतीय विदेश नीति की सफलता है.

भारत - जापान

ब्रिटेन एक उथल पुथल से गुजर रहा है. brexit के बाद यूरोपियन यूनियन और ब्रिटेन के मध्य व्यापारिक पेंच फसा पड़ा है. साथ ही अब वह इस रीजन में अलग थलग सा हो गया है. ऐसे में भारत ब्रिटेन की जरूरत है. ब्रिटेन ने भारत की UN में स्थायी सीट का समर्थन किया है. साथ ही प्रधानमंत्री मोदी उन चुनिन्दा विश्व नेताओ में शामिल हैं जिनको ब्रिटेन की महारानी ने डिनर के लिए न्योता दिया है. दोनों देशो के बीच रिश्ते गर्म जोशी के हैं.
(यूरोप यूनियन,अफ्रीका, एक्ट ईस्ट पालिसी के अंतर्गत पूर्वी देशो, मध्यपश्चिमी देशो और इजराइल-फिलिस्तीन-भारत सम्बन्ध पर नजर अगली कड़ी में. )
 
मोदी सरकार ने पिछले 4 सालो में विदेश नीति के मामले में पूर्व सरकारों की अपेक्षा सबसे अच्छा कार्य किया है. और उसका प्रभाव भारत की स्थिति पर भी दिख रहा है. सभी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर भारत की स्थिति एक ग्लोबल लीडर की है. सबसे तेज विकास दर वाला भारत पिछले 4 सालों में ही आठवे से पांचवे स्थान की अर्थव्यवस्था बन गया है.


विदेश नीति के दम पर ही भारत संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सीट के लिए मजबूत दावेदारी पेश कर रहा है. विदेश नीति का ही प्रभाव है की हम रूस के साथ सीरिया पर बात करते हैं तो अमेरिका के साथ दक्षिणी चीन सागर पर भी. हमारा प्रधानमंत्री बिना किसी विदेशी ताकत के प्रेशर में आये काबुल में नाश्ता, लाहौर में लंच और दिल्ली में डिनर करने की हिम्मत रखता है. पहली बार ब्रिटेन में गार्ड ऑफ़ ऑनर मिलता है. अफ्रीका में भारत की छवि चीन के तिलिस्म को तोड़ती दिखाई देती है. जर्मनी, फ्रांस जैसे देशो को भारत में आकर निर्माण करने पर मजबूर होना पड़ता है. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में वो सबकुछ भारत को मिला जिसकी जरूरत थी और अभी कहानी जारी है...

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