History of Mother's Day : मदर्स दे का इतिहास
हम
भारतीयों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि हम सभी लोगो को अपना समझना और उनकी संस्कृति
को अपनाना, दोनों सहजता से कर लेते हैं। मौका Mother's Day का है। अमेरिका से शुरू हुआ यह त्यौहार पहले सिर्फ धर्म
विशेष यानि कैथोलिक ईसाइयो का है। यह दिन वर्जिन मैरी को समर्पित है। मैरी के बारे
में हम सब जानते हैं लेकिन वर्जिन मैरी की पूजा, यह पश्चिमी लोगो के मानसिक सोच को दर्शाता है।
'एना जार्विस' ने इस धार्मिक त्यौहार को थोडा बदला। ध्यान
देने वाली बात है की यह त्यौहार, सिर्फ और सिर्फ वर्जिन मैरी से सम्बंधित था।
एना जार्विस ने इस त्यौहार को आसपास की महिलाओं को उपहार देने, खाना
खिलाने व् सम्मान देने का अवसर बना दिया।
अमेरिकी
व् यूरोपियन समाज में महिलाओ की स्थिति अत्यंत निम्न थी। उन्हें कोई अधिकार नही
थे। महिलाओ को सिर्फ वस्तु समझा जाता था। अमेरिका में 20वीं
सदी में आके महिलाओ को वोट देने का अधिकार दिया गया। पुरे यूरोपियन समाज में
महिलाओ का पक्ष लेने वाला कोई नही था। यूरोपियन समाज का मूल उद्भव ग्रीस सभ्यता
है। और ग्रीस सभ्यता के मुख्य शहर एथेंस में महिलाओ को सेक्स स्लेव बनाकर बेचा व्
खरीदा जाता था। यह कार्य, जब चर्चो द्वारा स्थापित राज में क़ानूनी थी।
मतलब धार्मिक रूप से भी कोई रोक नही थी। अफ्रीका जो आदिवासी इलाका था, वो
भी कई मायने में उस समय के यूरोप से बेहतर था।
ऐसे
में हम भारत की भी तुलना कर सकते हैं और इस बात को सभी जानते हैं की भारत में कभी
भी महिलाओ पर अत्याचार नही हुआ। कुछ परम्पराओ में बदलाव करके भले ही प्रथा को
कुप्रथा में बदल दिया गया था लेकिन उन सबका प्रयोजन शुभ फल के लिए था। सबसे पवित्र
ग्रंथो में, वेदों के अंदर महिलाओ द्वारा लिखित सूत्रो का
मिलना, प्राचीन समय से Female
God की थ्योरी, भारत
को एक आदर्श व्यवस्था बनाती थी। 19 वीं सदी के अंत में स्वामी विवेकानंद के यूरोप
दौरे का प्रभाव , वँहा की महिलाओ की स्थिति में बदलाव के रूप
में समझा जा सकता है। ग्रीस में भी एक त्यौहार मेट्रोनलिया जो जूनो को समर्पित था, मनाया
जाता था। यह ग्रीक देवताओ को समर्पित था। यह यूरोप में मदर्स दे का सबसे मूल उद्भव
था।
ऐना
जार्विस ने 20वीं सदी में इन त्योहारो में बदलाव किया और
समाज में मौजूद महिलाओ को इससे जोड़ा। समय के साथ बदले यूरोपीय समाज ने इस तरीके को
अपनाया और अब यह त्यौहार महिलाओ खासकर माँ तक सिमित हो गया।
बाद में , इस त्यौहार का व्यवसायीकरण हो गया। बाजार से खरीदे गए ग्रीटिंग कार्ड को
भेट में देना, बाजार से वस्तु खरीद कर महिलाओ को देना
जैसे कार्य लोग करने लगे। इसलिए ऐना जार्विस ने इस त्यौहार को समाप्त करने का प्रयास किया और
मदर्स दे का विरोध किया। अलग अलग देशो में अलग
अलग रूप से यह त्यौहार मनाया जाता है, जंहा
ईसाई धर्म का प्रभाव है वँहा आज भी यह त्यौहार वही व्यवसायीकरण की भेंट चढ़ा हुआ है
लेकिन दूसरे देशो जैसे, भारत, नेपाल श्रीलंका, जापान और चीन में अपनी प्राचीन
परम्पराओ के अनुसार मनाया जाने लगा है।
ईरान :
मुहम्मद की बेटी फातिमा का सालगिरह 20 जुमादा अल-ठानी को मनाया जाता है। यह ईरानी
क्रांति के बाद बदल दिया गया था, इसका कारण नारीवादी आंदोलनों के सिद्धांतों को
हटा कर पुराने पारिवारिक आदर्शों के लिए आदर्श प्रतिरूप को बढ़ावा देना था।
जापान : प्रारम्भ
में मातृ दिवस जापान में शोवा अवधि के दौरान महारानी कोजुन(सम्राट अकिहितो की मां)
के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता था
नेपाल :
माता तीर्थ औंशी जिसका अनुवाद है "मदर पिल्ग्रिमेज फोर्टनाईट" जो बैशाख
के महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ता हैं। यह त्यौहार अमावस्या के दिन होता है, इसलिए
इसे "माता तीर्थ औंशी" कहते हैं। यह शब्द "माता" अर्थात् मां
और "तीर्थ" अर्थात् तीर्थयात्रा शब्द से व्युत्पन्न हुआ हैं। यह त्यौहार
जीवित और स्वर्गीय माताओं के स्मरणोत्सव और सम्मान में मनाया जाता है, जिसमें
जीवित माताओं को उपहार दिया जाता हैं तथा स्वर्गीय माताओं का स्मरण किया जाता हैं।
नेपाल की परंपरा में माता तीर्थ की तीर्थयात्रा पर जाना प्रचलित हैं जो काठमांडू
घाटी के माता तीर्थ ग्राम विकास समिति की परिधि के पूर्व में स्थित हैं।
इस
तीर्थ यात्रा के संबंध में एक किंवदंती हैं। प्राचीन समय में भगवान श्री कृष्ण की
मां देवकी प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए घर से बाहर निकल गयी। उन्होंने कई स्थानों
का दौरा किया और घर लौटने में बहुत देर कर दी। भगवान कृष्ण अपनी मां के न लौटने पर
दुखी हो गए। वे अपनी मां की तलाश में कई स्थानों पर घूमते रहे परन्तु उन्हें सफलता
नहीं मिली। अंत में, जब वह "माता तीर्थ कुंड" पहुंचे तो
उन्होंने देखा कि उनकी मां तालाब के फुहार में नहा रही हैं।
भगवान
कृष्ण अपनी मां को देख कर बहुत खुश हुए और अपनी समस्त शोकपूर्ण घटना जो उनकी माता
की अनुपस्थिति में हुई थी उनके आगे कहने लगे। मां देवकी ने कृष्ण भगवान से कहा कि
"ओह!बेटा कृष्णा फिर तो इस स्थान को बच्चों की उनकी स्वर्गीय माताओं से मिलने
का पवित्र स्थल ही रहने दिया जाये".तब से यह किंवदंती है कि यह स्थान एक
पवित्र तीर्थयात्रा बन गया हैं जहां श्रद्धालु एवं भक्तगण अपनी स्वर्गीय माताओं को
श्रद्धा अर्पण करने आते हैं।
थाईलैंड :
यंहा मातृत्व दिवस थाइलैंड की रानी के जन्मदिन पर मनाया जाता है।
ब्रिटेन :
ब्रिटेन का मदर्स दे ऐतिहासिक क्रूर घटनाओ पर आधारित है। जब नाबालिगो को मजदूर बना
कर रखा जाता था। कई बार चर्च भी मजबूरन बच्चों को धार्मिक शिक्षा देते थे ,साथ
में मजदूरी भी करवाते थे और माँ बाप से मिलने नही देते थे। बाद में साल का एक दिन
माँ से मिलने के लिए निश्चित किया गया और यही मदर्स दे बना।
भारत :
भारत में माँ को समर्पित कोई एक त्यौहार नही है। दीवाली, रक्षाबंधन, नवरात्री, अहोई
अष्टमी, जैसे बड़े त्यौहार व ढेरो छोटे त्यौहार व अनेको राज्य स्तरीय त्यौहार भारत में माताओं, महिलाओं व् मातृशक्ति को समर्पित हैं। लेकिन हमने अमेरिका के मदर्स
दे जोकि मई के दूर रविवार को मनाया जाता है, को भी अपना लिया।
सवाल
यह भी उठता है की क्या मदर्स दे, भारत में जरूरी है या नही। क्या नेपाल की तरह
हम पश्चमी देशों का पिछलग्गू बनना नही छोड़ सकते? क्या भारतीय त्योहारों को छोड़कर
दुनिया की भेड़ चाल में शामिल होना ही हमारा आज का स्वभाव बन गया है। या फिर सवाल यह है कि भारतीय अपने त्योहारों को ही समझ नही पाए और जो दुसरे त्योहारों में दीखता है उसकी तरफ जल्दी आकर्षित होते हैं.
आप क्या सोचते हैं?
We have accepted Mother's day into our culture, not because of our sheepish tendencies, as is the case with many of our festivals, but not Mother's day. We never feel that we have praised our Mother enough to have enough time dedicated towards her. Even though, we celebrate Mother's day with equal vigour as the westerners, but our outlook towards it is completely different. Many Indians still view their Mother's as the greek godess Gaia, who is the ultimate supporter and helper. A literal God among humans, that is why, we can have a mother's day, mother's week, even mother's month, and we will know that Indians will definately celebrate it.
ReplyDeleteआपके विचार का स्वागत है
Deleteलेख अच्छा और प्रासंगिक है इसे आधुनिक युवा पीढ़ी में आत्मार्पित की अधिक आवश्यकता है।
ReplyDeleteधन्यबाद
DeleteNo need to celebrate a Special Day as a Mother Day Because Every day Is a Mother Day in India.
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