वैचारिक गुलामी - भारत के इतिहास का सच

भारत भले ही 1947 में स्वतन्त्र हो गया लेकिन वैचारिक स्वतंत्रता नही प्राप्त हुई। राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के तुरंत बाद जब वैचारिक स्वतंत्रता प्राप्त हो जानी थी, भारतीय जनमानस गुलाम ही रहा। स्वतंत्रता के बाद सत्ताधीशों ने भी कोई तत्परता नही दिखाई और भारतीय लोग परतंत्र बने रहे। ये कहलाये वैचारिक गुलाम। असल में भारतीयों को राजनैतिक परतंत्र रखना सम्भव नही था इसलिए वैचारिक गुलाम बनाने पर लगातार विदेशियों ने कार्य किया। भारत न तो मुस्लिम काल में पूरी तरह गुलाम था न ही अंग्रेजी काल में। भारत असल में गुलाम तब हुआ जब आजाद भारत में बच्चों को रटवा दिया गया भारत गुलाम था।

स्वतंत्रता से पहले भारत विकेन्द्रित था यानि कोई एक जगह से पुरे भारत की सत्ता नही चलती थी। कुछ राज्य / साम्राज्य / क्षेत्र स्वायत्त थे लेकिन ऐसे न जाने कितने थे। अंग्रेजों ने राजधानी कोलकाता से दिल्ली बदली तो लगा दिल्ली ही भारत का केंद्र है। जबकि भारत ने तो इलाहाबाद, मुर्शिदाबाद, पटना, उज्जैन, आगरा को भी राजधानी के रूप में देखा है। फिर भला दिल्ली पर कब्जा भारत पर कब्जा कैसे हुआ? अंग्रेजों के समय में भारत रियासतों, स्वायत्त क्षेत्रों और अंग्रेजी अधिकार क्षेत्रों में बंटा था। यानि पूर्ण रूप से भारत पर उनका अधिकार भी न था। उससे पहले मुस्लिम काल में न जाने कितने राजा-महाराजा अपना अपना झंडा ताने बैठे थे। दिल्ली पर बाबर था तो राणा सांगा भी तो थे। शेरशाह शुरी भी तो था। अकबर था तो महाराणा प्रताप भी तो थे। औरंगजेब के समय विजयनगर था और उसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा बना मराठा साम्राज्य भी। यानि मुगलों ने भी भला पूरा भारत पर अधिकार कब किया? जब मुस्लिम दिल्ली पर बैठे थे तब भी राजपूतों से लेकर मराठों तक, हिन्दू रियासतें डंके की चोट पर काम करती थी। केवल काम नही बल्कि अलाउद्दीन खिलजी से लेकर कुतुबद्दीन ऐबक तक, बाबर से लेकर अकबर, औरंगजेब और अन्य आक्रामक विदेशी को, भारतीय राजाओं ने युद्ध में हराया भी। कुलमिलाकर भारत तब भी परतंत्र नही था।

                                                  


जब अंग्रेज भारत आए तो सिर्फ वही नही आये बल्कि उनसे पहले भी कई देशों के लोग थे। फ्रांस, पुर्तगाल, डच लोग भी भारत में थे और शासन करने के लिए ही कार्य कर रहे थे। पुर्तगाली को भला 1960 में भारत छोड़कर गये। लेकिन जब हम इतिहास पढ़ते हैं तो हमे हमेशा पढ़ाया गया जैसे मुस्लिमों का लगातार राज भारत में रहा और उसके बाद सीधे अंग्रेजों ने 200 वर्षों तक हमें गुलाम बनाये रखा। मुगल काल में भारतीय रियासतों को क्यों नही पढ़ाया गया और न ही बताया गया डच, फ्रेंच और पुर्तगालियो के बारे में।

भारत का इतिहास भले ही कुछ रहा हो, हमने पढ़ा कि हम गुलाम थे। भले ही मुगल फ़ौज असम तक न पहुँच पायी पर हमने पढ़ा कि हम गुलाम थे। मेवाड़ सदा आजाद रहा लेकिन मुगलों को महान बताया गया। मराठों ने अटक से कटक तक भगवा फहराया लेकिन हमने पढ़ा कि मुस्लिमों के बाद सीधे अंग्रेजों ने शासन किया। कुछ इसीप्रकार रटा रटा कर भारतियों को बनाया गया गुलाम। वो उतने गुलाम तब नही थे जब विदेशी शासन था बल्कि वो उससे ज्यादा गुलाम बन गये जब अपना शासन है। यह कहलाई वैचारिक गुलामी।

अंग्रेजों से आजादी पाने का एक इतिहास हम आज आजादी के आन्दोलन के रूप में पढ़ते हैं। यह इतिहास भी अनगिनत अधूरे प्रसंगों से भरा पड़ा है। अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में भारतीओं ने कैसे लड़ाई लदी, यह भी अंग्रेज लिखकर गये और हम रह गये रटते रटते। महात्मा गाँधी के तीन आन्दोलन – असहयोग आन्दोलन 1920, सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 और भारत छोड़ो आन्दोलन 1942, इतिहास में ये आन्दोलन ही तो रटाये गये जबकि ये तीनों आन्दोलन असफल रहे। कांग्रेस का भारत के स्वतंत्रता में कितना योगदान रहा यह तो बच्चों को रटा दिया लेकिन क्या यह बताया गया कि आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिकों पर लालकिले में चले ट्रायल और उसके विरोध में नौसेना में फैले विद्रोह के बिना देश को आजादी मिलना मुमकिन ही नही थी। क्या भारत के बच्चों को उनके चाचा नेहरु के बारे में बताते हुए यह बताया गया कि उन्होंने सबसे पहले शपथ ब्रिटेन की महारानी के नाम पर ब्रिटिश झंडे के नीचे ली। क्या यह पढ़ाया गया कि दिल्ली में तिरंगा फहरने से पहले पोर्ट ब्लेयर में तिरंगा सुभाष चन्द्र बोस फहरा चुके थे या फिर देश को तोड़ने वाले मसौदे को स्वीकृति देने वाली कांग्रेस ही थी।   

वैचारिक गुलामी स्वतंत्रता के बाद और मजबूत होती चली गयी और हम न स्वतंत्रता से पहले का सच जान पाए न उसके बाद का। अंग्रेजों ने वैचारिक गुलाम बनाये रखने के लिए काफी प्रयास किया और भलीभांति तरीके से सदियों तक भारत को मानसिक गुलाम रखने की नीतियां बनाकर गये। साथ ही छोड़कर गये अपने लोगों को जो इन वैचारिक गुलामों को ऐसे ही गुलाम बनाये रखें।

जब अंग्रेज चले गये तो सत्ता पर बैठे गुलामों ने जनता तो गुलाम बनाये रखने के लिए स्वयं को अधिपति बना लिया। भारत ने एक परिवार की सत्ता देखी। इसी पारिवारिक सरकार के एक लम्बे दौर में गुम हो गयी नेताजी बोस के जिन्दा रहने के रहस्य,  लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु की कहानी, सावरकर के त्याग और तपस्या का ग्रन्थ, मुस्लिम लीग और कांग्रेस के गठजोड़ द्वारा भारत को तोड़ने की कहानी और लाखों लोगों के कत्लेआम का खून से सना इतिहास।

वैचारिक गुलामी में 15 अगस्त का जश्न तो याद रहा पर भूल गये भारत के उन दो टुकड़ों को जो पाकिस्तान और बंगलादेश के रूप में भारत के समक्ष सदा समस्या के रूप में उपस्थित हैं। हम भूल गये लाखों लोगों की मृत्यु जो बंटवारे के समय हुई या फिर शायद भुला दिए वो लाखों लोग क्योकि अगर कोई याद करता तो शायद देश के बंटवारे पर सवाल करता और पकड़े जाते वो अधिपति जिनके धोखें ने देश को बाँट दिया।

वैचारिक गुलामी ही तो थी कि परमाणु शक्ति सम्पन्न भारत राष्ट्र का कोई निवासी यह बात करने को तैयार नही कि समग्र विश्व में फैली हिन्दू संस्कृति की विरासत को आगे बढाने के लिए भला भारत हिन्दू राष्ट्र क्यों नही बना? भला धर्मों के आधार पर टुकड़े होने के बाबजूद क्यों भारत में वक्फ बोर्ड, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और मदरसों की एक लम्बी चैन मौजूद है। क्यों भारत में शरीयत अदालतें मौजूद हैं और क्यों अयोध्या, काशी और मथुरा में नही बनी मन्दिर?

 

वैचारिक गुलाम यह सवाल कैसे कर सकते हैं कि धर्म के आधार पर भारत टुटा तो मुस्लिम भारत में कैसे बच गये? और अगर मुस्लिमों को भारत में रहना ही था तो पाकिस्तान बना क्यों?

भारत की राजनीति में मुस्लिम तुष्टिकरण एक प्रमुख नीति रही। इसी नीति का ठोस आधार था मुस्लिम एकता और विभाजित हिन्दू। न ही हिन्दू एक हो पाए और न ही टूटी मुस्लिम तुष्टिकरण की परम्परा और न ही खत्म हुआ गुलामों का शासन और भारतीय जनता को गुलाम बनाये रखने का दौर।

भारतीय शिक्षा नीति : अंग्रेजो ने सोची समझी नीति के तहत शिक्षा व्यवस्था को बदलकर अंग्रेजी हित के अनुरूप ढाल दिया और गुलामी की इन्तेहा देखिये यह व्यवस्था 2020 तक चलती रही।

भले ही भारत स्वतंत्र था लेकिन आजाद भारत का बजट संसद में अंग्रेजो के हिसाब से तय किये गये समय के अनुसार 2016 तक पेश होता रहा।

बेशक भारत और ब्रिटेन में भौगोलिक स्तर पर काफी असमानताए हो लेकिन ब्रिटेन के लिए जो मध्य पूर्व है वही भारत में पढ़ाया जाने लगा तभी तो भारत की पुस्तकों में Middle East Asia आज भी अरब क्षेत्र के लिए पढ़ाया जाता रहा। जबकि भारत के नज़र से यह मध्य पश्चमी एशिया होना चाहिए।

सौभाग्य है कि वर्तमान में आजादी के अमृत महोत्सव में भारत सरकार गुलामी की निशानियों को मिटाने में लगातार लगी हुई है। 



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